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[भूलाचार
प्रकृतिस्वामित्वं प्रतिपादयन्नाह
सयअडयालपईणं बंध गच्छंति वीसहियसयं।
सव्वे मिच्छादिट्ठी बंधदि नाहारतित्थयरा ॥१२४१॥ अष्टचत्वारिंशच्छतप्रकृतीनां मध्ये शतं विंशत्युत्तरं बन्धप्रकृतयो भवन्ति, अष्टाविंशतिरबन्धप्रकृतयः। पंच शरीरबन्धनानि पंच शरीरसंघातानि चत्वारो वर्णाः चत्वारो रसाः एको गन्धः सप्त स्पर्शा सम्यक्त्वसम्यङ मिथ्यात्वे द्वे इत्येवमष्टाविंशतिः । एताभ्यः शेषाणां प्रकृतीनामाहारद्वयतीर्थकररहितानां सप्तदशाधिकं शतं मिथ्यादृष्टिर्बध्नाति । एतासां मिथ्यादृष्टिः स्वामीति । तीर्थकरत्वं सम्यक्त्वेन आहारद्वयं च संयमेनातो न मिथ्यादृष्टिर्बध्नाति, आहारकाहारकांगोपांगतीर्थकरनामानीति ॥१२४१॥
सासादनादीनां बन्धप्रकृती: प्रतिपादयन्नाह
अब प्रकृतियों के स्वामी का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ-एक सौ अड़तालीस प्रकृतियों में से एक सौ बीस प्रकृतियाँ बन्धयोग्य होती हैं। मिथ्यादृष्टि जीव सभी को बाँधते हैं किन्तु आहारक द्विक और तीर्थकर को नहीं बांधते हैं ॥१२४१॥
आचारवृत्ति-एक सौ अड़तालीस प्रकृतियों में से एक सौ बीस प्रकृतियाँ बन्धयोग हैं । अट्ठाईस अबन्ध प्रकृतियाँ हैं। पाँच शरीरबन्धन, पाँच शरीरसंघात, चार वर्ण, चार रस, एक गन्ध, सात स्पर्श तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इस प्रकार ये अट्ठाईस प्रकृतियाँ बन्धयोग्य नहीं हैं।
इनके अतिरिक्त शेष एक-सौ-बीस प्रकृतियों में से आहारद्विक और तीर्थंकर ये तीन प्रकृतियाँ कम करने से मिथ्यादृष्टि जीव एक सौ सत्रह प्रकृतियाँ बाँधता है, अर्थात् मिथ्यादृष्टि इन प्रकृतियों का स्वामी है । तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध सम्यक्त्व से होता है और आहारकद्वय का संयम से होता है इसीलिए मिथ्यादृष्टि जीव इन्हें नहीं बाँधते हैं।
सासादन आदि की बन्धप्रकृतियों को कहते हैं--
* यह गाथा बदली हुई है
सम्वे मिच्छाइट्ठी बंधई णाहारदुगं तित्थयरं । उणवीसं छादालं सासण सम्मो य मिस्सो य॥
अर्थ-सभी मिथ्यादष्टि जीव आहारद्विक और तीर्थकर इन तीन प्रकृतियों का बन्ध नहीं करते हैं। सासादन सम्यक्त्वी उन्नीस का एवं मिश्रगुणस्थानवर्ती छयालीस प्रकृतियों का बन्ध नहीं करते हैं। अर्थात मिथ्यात्वी १२० में से तीन को न बांधकर ११७ को बाँधते हैं। सासादनवर्ती मिथ्यात्व गुणस्थान की सोलह व्युच्छिन्न प्रकृतियां और तीन ये ऐसी १/४ छोड़कर शेष ११ का बन्ध करते हैं। मिश्रवाले सासादन की व्युच्छिन्न हुई २५ और इन १६ ऐसी ४४ और मनुष्य-आयु एवं देव-आयु ऐसी कुल ४६ प्रकृतियों को नहीं बांधते हैं।
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