Book Title: Mulachar Uttarardha
Author(s): Vattkeracharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 413
________________ पर्याप्त्यधिकारः [ ३७६ चतुरिन्द्रियस्य पिथ्यात्वादीनां १००, ४००/७, ३००/७, २००७; असंजिनां पंचेन्दिरस्य मिथ्यात्वादीनां १०००, ८०००/७, ३०००/७, २०००/७ मिथ्यात्वादीनामुत्कृष्ट: स्थितिबन्धः। सर्वत्र चावल्या संख्यातभाग एव आबाधा इति ॥१२४४।। उत्कृष्टस्थितिबन्ध प्रतिपाद्य जघन्यस्थितिबन्धं प्रतिपादयन्नाह बारस य वेदणी ए णामगोदाणमट्ठय मुहुत्ता। भिण्णमुहुत्तं तु ठिदी जहण्णयं सेस पंचण्हं ॥१२४५॥ वेदनीयस्य कर्मणो जघन्या स्थिति: द्वादश महर्ताः । नामगोत्रयोः कर्मणोरष्टौ मुहर्ताः जघन्या स्थितिः। शेषाणां पुनः पंचानां ज्ञानावरणदर्शनावरणमोहनीयायुरन्तरायाणां जघन्या स्थितिरन्तमुहूर्त्तमात्रमिति च । जघन्यस्थितेविशेष प्रतिपादयन्नाह । पंचज्ञानावरणचतुर्दर्शनावरणलोभसंज्वलनपंचान्तरायाणां जघन्या स्थितिरन्तमहा। सातवेद्यस्य द्वादशमुहूर्ता। यशःकीयुच्चगोत्रयोरष्टौ मुहर्ताः । क्रोधसंज्वलनस्य द्वौ मासो। मानसंज्वलन कमासः। मायासंज्वलनस्यार्धमासः पुरुषवेदस्याष्टौ संवत्सराः । निद्रानिद्राप्रचलाप्रचलास्त्यानगद्धिनिद्राप्रचलाऽसातवेदनीयानां सागरोपमस्य त्रयः सप्तभागा: पल्योपमासंख्यातभागहीनाः। मिथ्यात्वस्य सागरोपमस्य । चतुरिन्द्रिय जीव के १०० ४००/७ ३००७ २००/७ असंज्ञिपंचेन्द्रिय के १००० ४०००/७ ३०००७ २०००/७ इस संदष्टि के अनुसार द्वीन्द्रिय जीव के मिथ्यात्व आदि की उत्कृष्ट स्थिति, त्रीन्द्रिय जीव के .. मिथ्यात्व आदि को उत्कृष्ट स्थिति, चतुरिन्द्रिय जीव के मिथ्यात्व आदि की उत्कृष्ट स्थिति और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के मिथ्यात्व आदि की उत्कृष्ट स्थिति का त्रैराशिक से कथन है। सर्वत्र आबाधा आवली के जघन्य संख्यातवें भाग प्रमाण ही है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध का प्रतिपादन करके अब जघन्य स्थिति बन्ध कहते हैं गाथार्थ-वेदनीय की बारह मुहूर्त और नामगोत्र की आठ मुहूर्त तथा शेष पाँच कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है ।।१२४५।। प्राचारवृत्ति-वेदनीयकर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है । नाम और गोत्रकर्म की जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त है। शेष ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, आयु और अन्तराय इन पाँच कमोती जघन्य स्थिति अन्तमूहर्त मात्र है। जघन्य स्थिति में विशेष-भेदों का प्रतिपादन करते हैं। पाच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, लोभ-संज्वलन और पाँच अन्तराय, इन कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । सातावेदनीय की बारह मुहूर्त है। यशस्कोति और उच्चगोत्र की आठ महर्त है। संज्वलन-क्रोध की दो मास, संज्वलन-मान की एक मास, संज्वलन-माया की पन्द्रह दिन और पुरुषवेद की आठ वर्ष प्रमाण जघन्य स्थिति है। निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा, प्रचला और असातावेदनीय की जघन्य स्थिति एक सागर के तीन सातवें भागों में से पल्योपम के संख्यातवें भागहीन प्रमाण है। मिथ्यात्व की सागरोपम के सात दशवें भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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