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[ मूलाचारे
शरीरावयवानां बीभत्सता परमाणूनां न्यूनाधिकता । सर्वलक्षणा सम्पूर्णता च । पर्चेन्द्रियतिरियणरा — पंचेन्द्रि यतिर्यङ्नराणां समचतुरस्रन्यग्रोधस्वाति कुब्जवामनहुण्डसंस्थानानि षडपि पंचेन्द्रियाणां मनुष्याणां तिरश्चां च भवन्ति, अथवा अभेदात्तल्लिगं ताच्छब्द्यं च पंचेन्द्रियतिर्यङ नराः समचतुरस्रन्यग्रोध'स्वाति 'कुब्जवामनहुण्डाश्च भवन्ति सामान्येन । देवा चउरसा - देवाश्चतुरस्राः, णारया - नारकाः, हुंडा - हुण्डाः । देवाः समचतुरस्र - संस्थाना एव, नाकाश्च हुण्डकसंस्थाना एव न तेषामन्यत्संस्थानान्तरं विद्यत इति ॥ १०६२ ॥
इन्द्रिय संस्थानानि प्रतिपादयन्नाह
जवणालिया मसूरी अत्तिमुत्तथ चंदए खुरप्पे च । इंदियठाणा खलु फासस्स अणेयसंठाणं ॥ १०६३॥
जवणालिया —यवस्य नालिका यवनालिका, मसूरी-मसूरिका, वृत्ताकारा, अदिमुत्तयं - अतिमुक्तकं पुष्प विशेषः, चंदए - अर्द्धचन्द्रः, खुरप्पेय -क्षुरप्रं च इंदिय-इन्द्रियाणां इन्द्रियशब्देन श्रोत्रचक्षुर्घाणजिह्न ेन्द्रियाणां ग्रहणं स्पर्शनेन्द्रियस्य पृथग्ग्रहणात्, संठाणां-संस्थानानि आकारा यथासंख्येन संबन्धः । श्रोत्रेन्द्रियं यवनालिकासंस्थानं चक्षुरिन्द्रियं मसूरिकासंस्थानं, घ्राणेन्द्रियमतिमुक्तकपुष्पसंस्थानं जिह्नन्द्रियमर्धचन्द्रसंस्थानं क्षुरप्रसंस्थानं च खलु स्फुटम् । फारस्स - स्पर्शस्य स्पर्शनेन्द्रियस्य, अणेयसंठाणं - अनेकसंस्थानं अनेकप्रकार आकारः । स्पर्शनेन्द्रियस्यानेक संस्थानं समचतुरस्रादिभेदेन व्यक्तं सर्वत्र 'क्षयोपशमभेदात् । अंगुलासंख्यात भाग प्रमितं भावेन्द्रियं द्रव्येन्द्रियं पुनरंगुल संख्यातभागप्रमितमपि भवति । इन्द्रियं द्विविधं द्रव्येन्द्रियं
और पैरों का छोटा होना ।
हुण्डक संस्थान - शरीर के सभी अवयवों में बीभत्सपना, परमाणुओं में न्यून या अधिकता का होना तथा सर्व लक्षणों की सम्पूर्णता का न होना ।
छहों संस्थानों का लक्षण कहा । ये छहों मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में पाये जाते हैं । अथवा उस लिंग और उस शब्द के सामान्य से ये इन समचतुरस्र आदि संस्थानों वाले होते हैं । देवों के समचतुरस्र संस्थान ही होता है और नारकियों के हुण्डक संस्थान ही होता है अर्थात् इन देव और नारकियों में यही एक-एक संस्थान होता है, अन्य संस्थान नहीं हो सकते हैं । इन्द्रियों का आकार बताते हैं
गाथार्थ -- इन्द्रियों के आकार यव की नली, मसूरिका, तिल का पुष्प, अर्धचन्द्र और खुरपा के समान हैं तथा स्पर्शनेन्द्रिय के अनेक आकार हैं ॥१०६३॥
आचारवृत्ति - श्रोत्रेन्द्रिय का आकार जौ की नाली के समान है, चक्षु इन्द्रिय का आकार मसूरिका के समान गोल है, घ्राणेन्द्रिय का आकार अतिमुक्तक- तिल के पुष्प के समान है, जिह्वा इन्द्रिय का आकार अर्धचन्द्र के समान अथवा खुरपे के समान है । स्पर्शन इन्द्रिय के अनेकों आकार होते हैं जो समचतुरस्र आदि भेद से व्यक्त हैं । सर्वत्र क्षयोपशम के भेद से ही भेद होता है । इन्द्रियों के दो भेद हैं-भावेन्द्रिय और द्रव्येद्रिय । अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण भावेन्द्रिय हैं और द्रव्येन्द्रिय भी अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । निर्व. त्ति और उपकरण
१. कन्यग्रोधाः । २. क स्वास्ति कुब्जः । ३. क क्षयोपशमप्रदेशाः ।
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