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२८६]
[ मूलाचार
स्पर्शमात्रकामकृतप्रीतिसुखमुपलभन्ते तथा देव्योऽपीति ।।११४१।। तथा शेषाणां सुखप्रतिपादनार्थमाह
बंभे कप्पे बंभुत्तरे य तह लंतवे य कापिट्ट।
एदेसु य जे देवा बोधव्वा रूवपडिचारा ॥११४२॥ बंभे कप्पे-ब्रह्मकल्पे, बंभुत्तरे य-ब्रह्मोत्तरे च कल्पे, तह-तथा, लतवे य–लान्तवकल्पे, कापि? -कापिष्ठकल्पे, एदेसु य-एतेषु च कल्पेषु चान्येषु तत्प्रतिबद्धेषु, जे देवा-ये देवाः, बोधव्या-बोद्धव्याः ज्ञातव्याः, रुवपडिचारा-रूपे रूपेण वा प्रतीचारो येषां ते रूपप्रतीचाराः । ब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्ठेष कल्पेष ये देवास्ते रूपप्रतीचाराः दिव्यांगनानां शगारचतुरमनोज्ञवेषरूपालोकनमात्रादेव परं सुखं प्राप्नुवन्ति देव्योऽपि चेति ॥११४२॥ शब्दप्रतीचारान् प्रतिपादयन्नाह
सुक्कमहासुक्केसु य सदारकप्पे तहा सहस्सारे।
कप्पे एदेसु सुरा बोधव्वा सद्दपडिचारा ॥११४३॥ सुक्कमहासुक्केषु य-शुक्रमहाशुक्रयोश्च, सदारकप्पे-शतारकल्पे, तहा–तथा, सहस्सारेसहस्रारे च, कप्पे-कल्पे, एदेषु-एतेषु, सुरा-सुराः देवाः, बोधव्वा-बोद्धव्या:, सहपडिचारा-शब्दप्रतीचाराः, शब्दे शब्देन वा प्रतीचारो येषां ते शब्दप्रतीचाराः । एतेषु शुक्रमहाशुऋशतारसहस्रारकल्पेष ये देवा देव्योऽपि च ते शब्दप्रतीचाराः, देववनितानां मधुरसंगीतमृदुललितकथितभूषणारवश्रवणमात्रादेव परां प्रीतिमास्कन्दन्तीति ॥११४३॥
मनःप्रतीचारान् प्रतिपादयन्नाह
अनुभव करते हैं तथा देवियाँ भी देवों के स्पर्श मात्र से कामसुख का अनुभव करती हैं।
तथा शेष देवों के सुख का प्रतिपादन करते हैं---
गाथार्थ--ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर तथा लान्तव और कापिष्ठ इन चार स्वर्गों में देव देवियों के रूप को देखकर काम-सुख प्राप्त करते हैं ऐसा जानना ।।११४२।।
आचारवत्ति--ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव और कापिष्ठ स्वर्गों के देव देवांगनाओं के शृगार-चतुर और मनोज्ञ वेष तथा रूप के अवलोकन मात्र से ही परम सुख को प्राप्त हो जाते हैं। तथा देवियाँ भी अपने देव के रूप अवलोकन से काम का अनुभव कर तृप्त हो जाती हैं।
शब्द से काम सेवन का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ-शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार अल्पों में देव शब्द सुनकर कामसुख का अनुभव करनेवाले होते हैं ॥११४३।।
___ आचारवृत्ति-शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार कल्पों में जो देव और देवियाँ हैं वे शब्द सुनकर कामसुख का अनुभव करते हैं । अर्थात् वहाँ के देव अपनी देवांगनाओं के मधुर संगीत, मृदु ललित कथाएँ और भूषणों की ध्वनि के सुनने मात्र से ही परमप्रीति को प्राप्त कर लेते हैं।
मन से कामसेवन का प्रतिपादन करते हैं
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