________________
३३२ ]
बादराः पुनः प्रतरासंख्यात भागमात्राः, विशेषः परमागमतो द्रष्टव्य इति ॥ १२०७॥
कायिकानां संख्यामाह
तसकाइया असंखा सेढीओ पदरछेदणिष्पण्णा ।
सासु मग्गणासु वि णेदव्वा जीवसमासेज्ज ॥ १२०८ ॥
Terrfant द्रीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाः प्रत्येकमसंख्याताः श्रेणयः प्रतरच्छेद निष्पन्नाः प्रतरासंख्येयभागमिताः कायिकाः प्रतरासंख्येयभागमात्राः, स च प्रतरासंख्यातभागः असंख्याताः श्रेणयः प्रतरांगुलस्यासंख्यातभागेन जगच्छ्रणेः भागे हृते यल्लब्धं तावन्मात्राः । श्रेणय इति एवं शेषास्वपि मार्गणासु जीवानाश्रित्य प्रमाणं नेतव्यं ज्ञातव्यमिति आगमानुसारेण । तद्यथा नरकगतो नारकाः प्रथम पृथिव्यां मिथ्यादृष्टयोऽसंख्याताः श्रेणयः घनांगुलकिचिन्न्यूनद्वितीयवर्गमूल मात्राः, द्वितीयादिषु सप्तम्यन्तासु श्रेण्यसंख्येयभागमात्राः । द्वितीयादिषु सर्वासु पुनः सासादनसम्यमिध्यादृष्ट्यसंयताः पल्योपमासंख्यात भागमात्राः । तिर्यग्गतौ मिथ्यादृष्टयोऽनन्तानन्ताः स्वास्वादनादिसंयतासंयतान्ताः पत्योपमासंख्येयभागप्रमिताः । मनुष्यगतो मिथ्यादृष्टयो मनुष्याः श्रेण्यसंख्येयभागप्रमिताः स चासंख्येयभागः असंख्याताः योजनकोटीकोट्यः । सासादनसम्यग्दृष्टयो द्विपंचाशत्कोटीमात्राः सम्यङ - मिथ्यादृष्टयश्चतुरुत्तरैक कोटीशतमात्राः, असंयतसम्यग्दृष्टयः सप्तकोटीशतमात्राः । संयतासंयतास्त्रयोदशकोटी
[ मूलाचारे
चारों प्रकार के बादर जीव प्रतर के असंख्यात भागमात्र हैं । इनका विशेष विस्तार परमागम से जानना चाहिए ।
कायिकों की संख्या कहते हैं
-
गाथार्थ - सकायिक जीव प्रतर के असं ख्यात भाग प्रमाण ऐसी अस ख्यात श्रेणी मात्र हैं। शेष मार्गणाओं में भी जीवों को आश्रय लेकर घटित कर लेना चाहिए ।। १२०८ ॥ आचारवृत्ति - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ये त्रसकायिक हैं । इनमें से प्रत्येक असंख्यात श्रेणी प्रमाण हैं । अर्थात् प्रतर के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । प्रतरांगुल के असंख्यातवें भाग से जगत् श्रेणी को भाग देने पर जो लब्ध आता है वह असंख्यातश्रेणी मात्र है । इसी प्रकार से शेष मार्गणाओं में भी आगम के अनुसार जीवों का आश्रय लेकर प्रमाण जान लेना चाहिए। उसी का स्पष्टीकरण करते हैं ।
नरकगति में पहली पृथिवी में मिथ्यादृष्टि नारकी जीव असंख्यात श्रेणीप्रमाण हैं, अर्थात् घनांगुल का जो कुछ कम द्वितीय वर्गमूल है उतने मात्र हैं । द्वितीय पृथिवी से लेकर सातवीं पृथिवीपर्यन्त वे मिथ्यादृष्टि नारकी श्रेणी के असंख्यातवें भागमात्र हैं । दूसरी आदि सभी पृथिवियों में सासादन गुणस्थानवर्ती, सम्यङ मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि पल्योपम के असंख्यातवें भागमात्र हैं ।
तिर्यंचगति में मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त हैं और सासादन से लेकर संयतासंयतपर्यन्त जीव पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ।
Jain Education International
मनुष्य गति में मिथ्यादृष्टि मनुष्य श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं, वह असंख्यातवाँ भाग असंख्यात कोटाकोटि योजन है। सासादन सम्यग्दृष्टि जीव बावन करोड़ मात्र हैं । सम्यङमिथ्यादृष्टि एक सौ चार करोड़ हैं। असंयत सम्यग्दृष्टि सात सौ करोड़ मात्र हैं । संयतासंयत
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org