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पर्याप्यधिकारः ]
कुम्मुण्णदजोणीए तित्थयरा दुहिचक्कवट्टी य । रामावि य जायंते सेसा सेसेसु जोणीसु ॥ ११०५॥
कूर्मोन्नयनी विशिष्ट सर्वशुचिप्रदेशे शुद्धपुद्गलप्रचये वा तित्थयरा - तीर्थंकराः, दुविहचक्कवट्टी य — द्विविधचक्रवर्तिनः चक्रवत्तिवासुदेवप्रतिवासुदेवाः रामाविय - रामाश्वापि बलदेवा अपि, जायन्ते – समुत्पद्यन्ते। सेसा—शेषा अन्ये तीर्थंकरचक्रवर्तितबलदेव वासुदेवप्रति वासुदेवविवर्जिता भोगभूमिजादयः, सेसेसु — शेषयोः, जोणीसु –-योन्योर्वंशपत्रशंखावर्त्तयोरुत्पद्यन्ते । किन्तु शंखावर्त्ते विपद्यते गर्भः स भोगभूमिजानां न' भवति ते ह्यनपवर्त्यायुष इति ॥११०५ ॥
संवृता दियोनिविशेषांश्चतुरशीतिशतसहस्रभेदान् प्रतिपादयन्नाह -
णिच्चिदरधा सत्तय तरु दस विगलदियेसु छच्चेव । सुरणरतिरिए चउरो चोट्स मणुएस सदसहस्सा ॥११०६॥
गाथार्थ - कूर्मोन्नत योनि में तीर्थंकर, दोनों प्रकार के चक्रवर्ती और बलभद्र उत्पन्न होते हैं । शेष दो योनियों में शेष जीव होते हैं ।। ११०५॥*
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आचारवृत्ति - विशिष्ट सर्वशुचि प्रदेशरूप अथवा शुद्ध पुद्गलों के समूहरूप योनि में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, प्रतिवासुदेव और बलभद्र उत्पन्न होते हैं। शेष अन्य जन तथा भोगभूमिज आदि शेष अर्थात् वंशपत्र और शंखावर्तक योनि से उत्पन्न होते हैं । किन्तु शंखावर्तक में गर्भ नष्ट हो जाता है अतः वह भोगभूमिजों के नहीं होती है, क्योंकि वे अनपवर्त्य - अकालमृत्यु रहित आयुवाले होते हैं ।
अब संवृत आदि योनि के विशेष भेद रूप चौरासी लाख योनिभेदों को कहते हैं
गाथार्थ - नित्य निगोद, इतरनिगोद, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इनकी सात लाख, वनस्पति की दश लाख, विकलेन्द्रियों की छह लाख, देव, नारकी और तिर्यंचों की चारचार लाख और मनुष्यों की चौदह लाख योनियाँ हैं ।। ११०६ ॥
१. क संभवति ।
* गोम्मट सार जीवकाण्ड में इस गाथा में कुछ अन्तर है । यथा -
[२५१
कुम्मुण्णय जोणीए तित्थयरा दुहिचक्कवट्टी य ।
रामा वि जायंते सेसाए सेइगजणो दु ॥ ८२॥
अर्थ - कूर्मोन्नत योनि में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, अर्धचक्रवर्ती तथा बलभद्र तथा अपि शब्द की सामर्थ्य से अन्य भी महान पुरुष उत्पन्न होते हैं। तीसरी वंशपत्र योनि में साधारण पुरुष ही उत्पन्न होते हैं । जीव० प्र० टीका में लिखा है कि " अपि शब्दान्नेतरजनाः ।" परन्तु स्व. पं. गोपालदासजी के कथनानुसार मालूम होता है कि यहाँ पर "अपि शब्दादितरजनाः अपि " ऐसा पाठ होना चाहिए, क्योंकि प्रथम चक्रवर्ती भरत जिस योनि से उत्पन्न हुए थे, उसी से उनके निन्यानवें भाई भी उत्पन्न हुए थे । [ गोम्मटसारजी गा० ८२ की टिप्पणी ]
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