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पर्याप्त्यधिकारः]
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सहस्सा-वर्षसहस्राणि, दस-दश, जहणणा-जघन्यायुषः स्थितिः। सीमंतकनरके नारकाणां भवनवासिनां देवानां व्यंतराणां च जघन्यमायुर्दशवर्षसहस्राणीति ॥१११८।।
भवनवासिनां व्यतराणां चोत्कृष्टमायु:प्रमाणं प्रतिपादयन्नाह
असुरेसु सागरोवम तिपल्ल पल्लं च णागभोमाणं ।
अद्धाद्दिज्ज सुवण्णा दु दीव सेसा दिवड्ढं तु॥१११६॥ असरेस --असुराणां भवनवासिनां प्रथमप्रकाराणां अंबावरीषादीनां, सागरोवम-सागरोपम, तिपल्ल-त्रीणि पल्यानि त्रिपल्योपमानि, पल्लं च-पल्यं च पल्योपमं णागभोमाणं-नागेन्द्राणां-धरणेन्द्रादीनां, भोगणं--भौमानां व्यंतराणां किनरेन्द्राणां यथासंख्येन संबन्धः नागेन्द्राणामुत्कृष्टमायुस्त्रीणि पल्योपमानि ध्यंतराणां किनरादीनामुत्कृष्टमायुरेक पल्पोपमं धातायुरपेक्ष्य सार्धपल्यम् । अद्धादिज्ज-अर्धतृतीये द्विपल्योपमे पल्योपमार्धाधिके द्वे पल्योपमे, सुवण्णा-सुपर्णकुमाराणां, तु--तु द्वे पल्योपमे दीव-द्वीपानां द्वीपकुमाराणां, सेसा-शेषाणां विद्युदग्निस्तनितोदधिदिग्वायुकुमाराणां, दिवड्ढं तु-अर्धाधिकं पल्योपमं पल्योपमार्द्धनाधिकमेकं पल्योपमम् । सुपर्णकुमाराणां प्रकृष्टमायुद्धे पल्योममे पल्योपमा धिके, द्वीपकुमाराणां च द्वे पल्योपमे प्रकृष्टमायुः शेषाणां तु कुमाराणां षण्णां पल्योपमं पल्योपमा‘धिकमुत्कृष्ट मायुरिति ॥१११६॥ ज्योतिषां जघन्योत्कृष्टमायुः शक्रादीनां च जघन्यं प्रतिपादयन्नाह
पल्लट्ठभाग पल्लं च साधियं जोदिसाण जहण्णिदरम् । हेटिल्लुक्कस्सठिदी सक्कादीणं जहण्णा सा ॥११२०॥
दश हजार वर्ष है तथा भवनवासी और व्यन्तर देवों की जघन्य आयु दश हजार वर्ष प्रमाण है।
भवनवासी और व्यन्तरों की उत्कृष्ट आयु का प्रमाण कहते हैं
गाथार्थ-असुरों में उत्कृष्ट आयु एक सागर, नागकुमार की तीन पल्य, व्यन्तरों की एक पल्य, सुपर्णकुमारों को ढाई पल्य, द्वीपकुमारों की दो पल्य और शेष कुमारों की डेढ़ पल्य प्रमाण है ॥१११९।।
प्राचारवत्ति-भवनवासियों के दश प्रकारों में प्रथम असुरकुमार देव हैं, उनमें भी अम्बावरीष आदि जाति के असरकमारों की उत्कृष्ट आय एक सागर है। नागकुमारों में धरणेन्द्र आदिकों की उत्कृष्ट आयु तीन पल्य है । भौम-व्यन्तरों में किन्नर आदिकों की एक पल्य है तथा घातायु की अपेक्षा करके डेढ़ पल्य है। सुपर्णकुमारों की ढाई पल्य है। द्वीपकुमारों की दो पल्य है और शेष—विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार भोर वायुकुमार इन सबकी डेढ़ पल्य है। यह सब उत्कृष्ट आयु का प्रमाण है।
ज्योतिषियों की जघन्य व उत्कृष्ट आयु तथा इन्द्रादिकों की जघन्य आयु कहते हैं
गाथार्थ-ज्योतिषी देवों की जघन्य आयु पल्य के आठवें भाग है और उत्कृष्ट आयु कुछ अधिक एक पल्य है। नीचे के देवों की जो उत्कृष्ट आयु है वही वैमानिक इन्द्रादि की षघन्य आयु है ॥११२०॥
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