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[ मूलाचारे समर्थो भवति यस्य कारणस्य निर्वृतिः सम्पूर्णतानप्राणपर्याप्तिरित्युच्यते । तया भाषापर्याप्तिरिति किमुक्त भवति येन कारणेन सत्य-सत्य-मृषा असत्यमृषाया मृषा असत्यमृषाया भाषायाश्चतुर्विधायाः योग्यानि पुद्गलद्रव्याण्याश्रित्य चतुर्विधाया भाषायाः स्वरूपेण परिणमय्य समर्थो भवति तस्य कारणस्य नितिः सम्पूर्णता भाषापर्याप्तिरित्युच्यते। तथा मनःपर्याप्तिरिति किमुक्त भवति येन कारणेन चतुर्विधमन:प्रायोग्यानि पुदगलद्रव्याण्याश्रित्य चतुर्विधमन पर्याप्त्या परिणमय्य समर्थो भवति तस्य कारणस्य निर्वतिः सम्पूर्णता मनःपर्याप्तिरित्युच्यते । अतो न पृथग्लक्षणसूत्रं कृतमिति ॥१०४७।। पर्याप्तीनां स्वामित्वं प्रतिपादयन्नाह--
एइंदिएस चत्तारि होति तह आदिदो य पंच भवे।
वेइंदियादियाणं पज्जत्तीओ असणित्ति ॥१०४८॥ एइ दिएस-एकमिन्द्रियं येषां ते एकेन्द्रियाः पृथिवी हायिकादिवनस्पतिकायिकान्तास्तेष्वेकेन्द्रियेषु । चसारि-चतस्रोऽष्टार्द्धाः। होति-भवन्ति। तह-तथा तेनैध न्यायेन व्यावणितक्रमेण । आविदो यआदितश्चादौ प्रति प्रथमाया आरभ्य, पंच -दशार्धसंख्यापरिमिताः। भवे-भवन्ति विद्यन्ते, वेइ दियादियाणं-द्वीन्द्रियादीनां द्वीन्द्रियादिर्येषां ते द्वीन्द्रियादयस्तेषां द्वीन्द्रियादीनां, पज्जत्तीओ-पर्याप्तयः, असण्णित्ति-असंज्ञीति असंज्ञिपर्यन्तानां द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाणामाहारशरीरेन्द्रियानप्राणभाषापर्याप्तयः पंच भवन्ति । तथैकेन्द्रियेषु चाहारशरीरेन्द्रियानप्राणपर्याप्तयश्चतस्रो भवन्ति, द्वीन्द्रियाद्यसंज्ञिपर्यन्तानां पंच भवन्तीति ॥१०४८॥
अथ षडपि पर्याप्तयः कस्य भवन्तीत्याशंकायामाह
का नाम आनप्राणपर्याप्ति है।
भाषापर्याप्ति-जिस कारण से सत्य, असत्य, उभय और अनुभय इन चार प्रकार की भाषा के योग्य पुद्गलद्रव्यों का आश्रय लेकर उन्हें चतुर्विध भाषारूप से परिणमन कराने में समर्थ होता है उस कारण की सम्पूर्णता का नाम भाषापर्याप्ति है।
___मनःपर्याप्ति-जिस कारण से सत्य, असत्य आदि चार प्रकार के मन के योग्य पुद्गल द्रव्यों को ग्रहण करके उन्हें चार प्रकार की मनःपर्याप्ति से परिणमन कराने में समर्थ होता है उस कारण की सम्पूर्णता को मनःपर्याप्ति कहते हैं। इसलिए पृथक से इन्हें कहने के लिए गाथाएं नहीं दी गयी हैं । अर्थात् उपर्युक्त गाथा में पर्याप्तियों के जो नाम कहे गये हैं उनसे ही उनके लक्षण सूचित कर दिये गये हैं।
पर्याप्तियों के स्वामी का प्रतिपादन करते हैं--
गाथार्थ–एकेन्द्रियों में प्रारम्भ से लेकर चार तथा द्वीन्द्रिय आदि से असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त पर्याप्तियाँ पाँच होती हैं ।।१०४८॥
आचारवृत्ति-पृथिवी कायिक से लेकर वनस्पतिकायिकपर्यन्त एकेन्द्रिय जीवों के आहार, शरीर, इन्द्रिय, और आनप्राण ये चार पर्याप्तियाँ होती हैं। तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञो पंचेन्द्रिय जीवों के आहार, शरीर, इन्द्रिय, आनप्राण और भाषा ये पांच पर्याप्तियाँ होती हैं।
ये छहों पर्याप्तियाँ किसके होती हैं ? उसका उत्तर देते हैं
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