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पर्याप्स्यधिकारः]
[२२७ भाग-भागः, असंखेज्जदिम-असंख्यातः, जं देह-य उपचयो यावत्पिण्डो यत्परिमाणोऽङ गुलस्य द्रव्यांगुलस्य, तं देहं-स उपचयस्तावापिण्डस्तत्परिमाणः। एई दियादि-एकेन्द्रिय आदिर्येषां ते एकेन्द्रियादयः, पंचेदियंत--पंचेन्द्रियोन्ते येषां ते पंचेन्द्रियान्ताः। एकेन्द्रियादयश्च ते पंचेद्रियान्ताश्चैकेन्द्रियादिपंचेन्द्रियान्तास्तेषां देहः शरीरमेकेन्द्रियादिपंचेन्द्रियान्तदेहः, एकेन्द्रियद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियपंचेन्द्रियाणां शरीरं, जहणण-द्रव्यांगुलमसंख्यातखण्डं कृत्वा तत्रैकखण्डोपचयो यावान् देहो यन्मात्रस्तन्मात्री देहः शरीरं जघन्येनकेन्द्रियादिपंचेन्द्रियपर्यन्तानामिति ।।१०७१॥ तेषामेवोत्कृष्टप्रमाणं प्रतिपादयन्नाह
साहियसहस्समेयं तु जोयणाण हवेज्ज उक्कस्सं ।
एयंदियस्स देहं तं पुण पउमत्ति णादव्वं ॥१०७२॥ साहिय-सहाधिकेन वर्तत इति साधिकं सक्रोशद्वयं, सहस्समेयं तु– सहस्रमेकं तु एकम् एकसहस्र, जोयणाणं-योजनानां, हवेज्ज-भवेत्, उक्कस्सं-उत्कृष्ट, एइदियस्स-एकेन्द्रियस्य, देहं-देहः शरीर, तं पुण-स पुनः, पउमत्ति णायव्वं-पद्ममिति ज्ञातव्यम् । तेन पृथिवीकायादिवायुकायान्तानां त्रसानां चैतावन्मात्रस्य देहस्य निराकरणं द्रष्टव्यम् । योजनानां सहस्रमेकं साधिकं च तन्मात्र एकेन्द्रियस्य देहः स पुनर्देहो वनस्पतिसंज्ञकस्य पद्मस्य ज्ञातव्यः । प्रमाणप्रमाणवतोरभेदं कृत्वा निर्देश इति ॥१०७२।। द्वीन्द्रियादीनामुत्कृष्टदेहप्रमाणमाह
संखो पुण वारसजोयणाणि गोभो भवे तिकोसंतु। भमरो जोयणमेत्तं मच्छो पुण जोयणसहस्सं ॥१०७३॥
प्राचारवृत्ति--एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय-इन जीवों के शरीर का प्रमाण जघन्य रूप से द्रव्यांगुल प्रमाण के असंख्यात खण्ड करके उसमें से एक भाग प्रमाण है । अर्थात् इनका जघन्य शरीर द्रव्यांगुल' के असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
इन जीवों को ही उत्कृष्ट अवगाहना कहते हैं
गाथार्थ-एकेन्द्रिय जीव का उत्कृष्ट शरीर कुछ अधिक एक हज़ार योजन होता है ।।१०७२॥
आचारवृत्ति-एकेन्द्रिय जीव का उत्कृष्ट शरीर कुछ अधिक-दो कोस अधिक एक हज़ार योजन प्रमाण है। वनस्पति कायिक में यह कमल का जानना चाहिए । प्रमाण और प्रमाणवान में अभेद करके यह कथन किया गया है। इस कथन से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वस इन जीवों का इतने बड़े शरीर का निराकरण किया गया समझना चाहिए।
द्वीन्द्रिय आदि जीवों के उत्कृष्ट शरीर-प्रमाण को कहते हैं
गाथार्थ-शंख बारह योजन, गोभी अर्थात् खजूरा नामक कीडा तीन कोश, भ्रमर एक योजन तथा मत्स्य एक हज़ार योजन प्रमाण हैं ।।१०७३।।
१. "अष्टयवनिषन्नाङ गुलेन येऽवष्टब्धाः प्रदेशाः तेषां मध्येऽनेकस्याः प्रदेशपंक्तेः यावदायामस्तावन्मात्रं
द्रव्यांगुले"-मूलाचार पर्याप्त्यधिकार ।
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