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[मूलाधारे
संखो पुण-शंख: पुन:न्द्रियः, वारसजोयणाणि-द्वादशयोजनानि द्वादशयोजनो वा,गोभीगोपालिका खजूरको वा, भवे-भवेत्, तिकोसं तु-त्रिकोशं तु त्रिकोशमात्रस्त्रीन्द्रियः, भमरो-भ्रमरो मधुकरश्चतुरिन्द्रियः, जोयणमेत-योजनमात्रं गव्यूतिचतुष्टयमात्रः, मच्छो-मत्स्यः, पुण--पुनः, जोयणसहस्सयोजनसहस्रः। द्वीन्द्रियाणां मध्ये उत्कृष्टदेहः शंख: स च द्वादशयोजनमात्र:, त्रीन्द्रियाणां मध्ये उत्कृष्टदेहो गोभी सा च क्रोशत्रयपरिमिता', चतुरिन्द्रियाणां मध्ये उत्कृष्ट देहो भ्रमरः स च योजनप्रमाणः, पंचेन्द्रियाणां मध्ये उत्कृष्टदेहो मत्स्यः स च योजनसहस्रायाम इति ।।१०७३॥ प्रमाणमपि प्रमाणसूत्रेण गृहीतं यतोऽतो जम्बूद्वीपस्यापि परिधिप्रमाणमाह
जंबदीवपरिहिओ तिण्णिव लक्खं च सोलहसहस्सं। बेचेव जोयणसया सत्तावीसा य होति बोधव्वा ॥१०७४॥ तिण्णेव गाउआइं अट्ठावीसं च धणुसयं भणियं ।
तेरस य अंगुलाई अद्ध गुलमेव सविसेसं ॥१०७५॥ जम्बूद्वीपो योजनलक्षविष्कम्भ एतावत्परिधिप्रमाणग्रहणस्यान्यथानुपपत्तेस्तस्य च ग्रहणं बहुप्रमाणविकल्पसंग्रहणं जम्बूद्वीपप्रमाणग्रहणं च स्वयंभूरमणद्वीपसमुद्रायामप्रमाणज्ञापनार्थ तयोश्च प्रमाणकथनमुत्कृष्टदेहप्रमाण केन्द्रियाद्यवस्थानज्ञापनार्थमित्यतो योजनलक्षं जम्बूद्वीपविष्कम्भवर्ग दशगुणं कृत्वा वर्गमूलं च गृहीत्वैव पठति;-जम्बूदीवपरिहिओ-जम्बूवृक्षोपलक्षितो द्वीपो जम्बूद्वीपोऽसंख्यातद्वीपसमुद्राणां मध्यनाभि
आचारवृत्ति-द्वीन्द्रियों में शंख का बारह योजन का शरीर है, त्रीन्द्रियों में गोपालिका या खर्ज़रक प्राणी का शरीर तीन कोश है, चतुरिन्द्रियों में भ्रमर का एक योजन-चार कोश प्रमाण है और पंचेन्द्रियों में महामत्स्य का उत्कृष्ट शरीर एक हजार योजन लम्बा है।
यहाँ प्रमाण का भी प्रमाणसूत्र से ग्रहण हो गया है, अतः जम्बूद्वीप की परिधि का प्रमाण कहते हैं - -
गाथार्थ-जम्बूद्वीप की परिधि का प्रमाण तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन समझना तथा तोन कोश, अट्ठाईस सौ घनुष, साढ़े तेरह अंगुल और कुछ अधिक प्रमाण है ॥१.७४-१०७५॥
आचारवत्ति-जम्बूद्वीप के विस्तार का प्रमाण एक लाख योजन है अन्यथा गाथा में कथित परिधि का इतना प्रमाण बन नहीं सकता था। तथा इसका ग्रहण बहुत प्रमाण के भेदों का संग्रह करने के लिए है। अर्थात् जम्बूद्वीप के प्रमाण का ग्रहण स्वयंभूरमणद्वीप और स्वयंभूरमणसमुद्र के विस्तार का प्रमाण बतलाने के लिए है और इन दोनों के प्रमाण का कथन उत्कृष्ट शरीर प्रमाण से सहित एकेन्द्रिय आदि जीवों के अवस्थान को बतलाने के लिए है। इसलिए जम्बूद्वीप के विस्तार में एक लाख योजन का वर्ग करके, उसे दश गुणा करके, उसका वर्गमूल निकालना चाहिए । तब जम्बूद्वीप की परिधि का प्रमाण निकल आता है । अर्थात् तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोश, अट्ठाईस सौ धनुष, साढ़े तेरह अंगुल
१. कत्रिकोशायामा।
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