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शीलगुणाधिकारः ]
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शील के इन तीनों प्रकार के भेदों को निकालने के लिए क्रमश: संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट तथा समुद्दिष्ट इन पाँच प्रकारों को समझना चाहिए। इन शीलों के भी समप्रस्तार और विषमप्रस्तार की अपेक्षा गूढ यन्त्र बन जाते हैं :
यदि किसी ने पूछा कि १६४४३ वाँ भंग कौन-सा है तो इस संख्या में १० का भाग देने पर १६४४३÷१०÷१६४४ लब्ध आये और शेष ३ रहने से, 'प्रणीत रससेवन' ग्रहण करना तथा लब्ध में एक मिलाकर पुनः १० से भाग देने पर १६४५ ÷ १० = १६४ आये । यहाँ पर शेष में ५ होने से 'दाह' लेना तथा लब्ध में १ मिलाकर ५ से भाग देने से १६५ : ५ ३३ आये । यहाँ शेष में शून्य होने 'कर्णेन्द्रिय' लेना । फिर लब्ध को ३ से भाग देने से ३३ : ३ – ११ आये, यहाँ भी शेषः
शून्य होने से 'काययोग' लेना । पुनः लब्ध में ३ का भाग देने पर (११ ÷ ३) यहाँ शेष में २ होने से 'कारित' लेना तथा लब्ध ३ में १ मिलाकर २ से भाग देने पर (४ : २ = २) शेष में शून्य होने से 'स्वप्न' लेना । फिर २ लब्ध में २ का भाग देने पर शेष में शून्य होने से अन्तिम ' अचेतन' लेना । अब इसका उच्चारण ऐसा करना कि 'प्रणीत रस सेवनत्यागी, दाहबाधारहित, कर्णेन्द्रियविषय- विरत, काय गुप्तियुक्त, कारित दोषरहित, स्वप्न दोषरहित एवं अचेतनस्त्रीविरक्त मुनि' १६४४३ वें भंग के धारक होते हैं ।
अठारह हज़ार शीलों का विषम प्रस्तार की अपेक्षा यन्त्र
विषयाभि. वस्तिमोक्ष, प्रणीत संसक्त द्र. से शरीरांगो. प्रेमि-स. शरीर सं. अतीत भो. अना. भो | इष्ट वि.
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७
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१
२
५
&
३
१०
६
चिंता
0
स्पर्शन रसना १०० मनोयोग ! वचनयोग काययोग
५०० १०००
0
०
कृत
०
दर्शनेच्छा दीर्घ निः.
१०
२०
जागृत
स्वप्न
० ४५००
चेतन
कारित अनुमोदना |
१५०० ३०००
अचेतन
६०००
घ्राण
२००
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ज्वर
३०
चक्षु
३००
दाह
४०
श्रोत्र
४००
आहार- रु. मूर्च्छा ६०
५०
उन्माद जीवन सं.
७०
१. गोम्मटसार जीवकाण्ड (श्रीमद् रामचन्द्रग्रन्थमाला से प्रकाशित ) गाथा ६५ के टिप्पण से ।
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८०
मरण ६०
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