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शीलगुणाधिकार। ]
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सर्वकर्मविनिर्मुक्तः सो पाववि-स प्राप्नोति सव्वकल्लाणं - सर्वकल्याणं, अनन्तचतुष्टयं पंचकल्याणानि वा । सूत्रार्थविकल्पतो' विज्ञाय शीलगुणान् यः पालयति स विशुद्धः सन् सर्वकल्याणानि प्राप्तोतिीति ॥१०४३॥
इति श्रीमद्वट्टकेर्याचार्यवर्यप्रणीतमूलाचारे वसुनन्द्याचार्य प्रणीताचारवृत्त्याख्यटीकासहिते शीलगुणव्यावर्णननामैकादशोऽधिकारः ।।
उनका पालन करते हैं वे सर्व कर्मों से मुक्त होते हुए अनन्तचतुष्टय अथवा पंचकल्याणकों को प्राप्त करते हैं ।
इस प्रकार वसुनन्वि - आचार्य प्रणीत 'आचारवृत्ति' नामक टीका सहित श्रीमद् बट्टकेराचार्यवर्य प्रणीत मूलाचार में शीलगुण व्यावर्णन नामका ग्यारहवाँ अधिकार पूर्ण हुआ ।
१. का सूत्रार्थ विकल्पः ।
* अम्य पाण्डुलिपि में यह गाथा अधिक है
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सो मे तिहूवणमहिदो सिद्धो बुद्धो णिरंजणो णिच्ची । विसदु वरणाणलाहं चरितद्धि समाधि च ॥
अर्थ - त्रिभुवनपूज्य, सर्वकर्माजन से रहित, नित्य, शुद्ध और बुद्ध सिद्ध परमेष्ठी मुझे ज्ञानलाभ, चारित्रशुद्धि और समाधि प्रदान करे ।
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