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________________ शीलगुणाधिकार। ] [ २०३ सर्वकर्मविनिर्मुक्तः सो पाववि-स प्राप्नोति सव्वकल्लाणं - सर्वकल्याणं, अनन्तचतुष्टयं पंचकल्याणानि वा । सूत्रार्थविकल्पतो' विज्ञाय शीलगुणान् यः पालयति स विशुद्धः सन् सर्वकल्याणानि प्राप्तोतिीति ॥१०४३॥ इति श्रीमद्वट्टकेर्याचार्यवर्यप्रणीतमूलाचारे वसुनन्द्याचार्य प्रणीताचारवृत्त्याख्यटीकासहिते शीलगुणव्यावर्णननामैकादशोऽधिकारः ।। उनका पालन करते हैं वे सर्व कर्मों से मुक्त होते हुए अनन्तचतुष्टय अथवा पंचकल्याणकों को प्राप्त करते हैं । इस प्रकार वसुनन्वि - आचार्य प्रणीत 'आचारवृत्ति' नामक टीका सहित श्रीमद् बट्टकेराचार्यवर्य प्रणीत मूलाचार में शीलगुण व्यावर्णन नामका ग्यारहवाँ अधिकार पूर्ण हुआ । १. का सूत्रार्थ विकल्पः । * अम्य पाण्डुलिपि में यह गाथा अधिक है Jain Education International सो मे तिहूवणमहिदो सिद्धो बुद्धो णिरंजणो णिच्ची । विसदु वरणाणलाहं चरितद्धि समाधि च ॥ अर्थ - त्रिभुवनपूज्य, सर्वकर्माजन से रहित, नित्य, शुद्ध और बुद्ध सिद्ध परमेष्ठी मुझे ज्ञानलाभ, चारित्रशुद्धि और समाधि प्रदान करे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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