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________________ पर्याप्त्यधिकारः शीलगुणाधिकारं व्याख्याय सर्वसिद्धान्तकरणचरणसमुच्चयस्वरूपं द्वादशाधिकारं पर्याप्त्याख्यं प्रतिपादयन् मंगलपूर्विकां प्रतिज्ञामाह काऊण णमोक्कारं सिद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं । पज्जत्तीसंगहणी वोच्छामि जहाणुपुत्वीयं ॥१०४४॥ काऊण-कृत्वा । णमोक्कार-नमस्कारं शुद्धमनोवाक्कायप्रणामम् । सिद्धाणं-सिद्धानां सर्वलेपविनिर्मुक्तानाम् अथवा सर्वसिद्धेभ्यः प्राप्ताशेषसुखेभ्यः । कम्मचक्कमुक्काणं--कर्मचक्रमुक्तानां चक्रमिव चक्रं कर्मनिमितं यच्चतुर्गतिपरिभ्रमणं तेन परिहीणानां कर्मचक्रविप्रमुक्तेभ्यो वा संसारान्निर्गतेभ्यः । पज्जतीर पर्याप्ती आहारादिकारण संपूर्णताः। संगहणी-सर्वाणि सिद्धान्तार्थप्रतिपादकानि सूत्राणि संगृह्णन्तीति संग्रहिण्यस्ताः संग्रहिणीगृहीताशेषतत्त्वार्थाः । अथवा पर्याप्तिसंग्रहं पर्याप्तिसंक्षेपं पर्याप्त्यधिकारं वा 'सर्वनियोगमूलभूतम् । वोच्छामि-वक्ष्ये विवृणोमि । जहाणपुवीयं-यथानुपूर्व यथाक्रमेण सर्वज्ञोक्तागमानुसारेण, न स्वमनीषिकया कर्मचऋविनिर्मुक्तभ्यः सिद्धेभ्यः सिद्धानां वा नमस्कारं कृत्वा यथानुपूर्व पर्याप्ती: संग्रहिणी: वक्ष्य इति ।।१०४४॥ शीलगुण अधिकार का व्याख्यान करके सर्वसिद्धान्त ओर करणचरण के समुच्चयस्वरूप पर्याप्ति नाम के बारहवें अधिकार का प्रतिपादन करते हुए मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा-सूत्र कहते गाथार्थ-कर्म समूह से रहित सिद्धों को नमस्कार कर मैं पर्याप्ति का यथाक्रम संग्रह करनेवाला अधिकार कहूँगा ॥१०४४॥ __ आचारवृत्ति-जो कर्मचक्र से मुक्त हो चुके हैं, अर्थात् चक्र के समान कर्म निमित्तक चतुर्गति के परिभ्रमण से छूट चुके हैं, ऐसे सर्वलेप से रहित अथवा अखिल सुख को प्राप्त सिद्धों को मन-वचन-काय पूर्वक नमस्कार कर मैं पर्याप्ति संग्रहणी कहूँगा। आहार आदि कारणों की सम्पूर्णता को पर्याप्ति कहते हैं । सर्वसिद्धान्त के प्रतिपादक सूत्रों को जो सम्यक्प्रकार से ग्रहण करे वह संग्रहणी है । इस तरह मैं सर्वसिद्धान्त को संग्रह करनेवाले अधिकार का कथन करूंगा। अथवा पर्याप्तिसंग्रह-पर्याप्तिसंक्षेप या सर्वनियोगों के मूलभूत पर्याप्ति-अधिकार को मैं सर्वज्ञ कथित आगम के अनुसार कहूँगा, अपनी तुच्छ कल्पना से नहीं । इस कथन से ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ को सर्वज्ञदेव द्वारा कथित आगम से अनुबद्ध सिद्ध किया है। १. क सर्वानुयोग। २. क विमुक्तेभ्यः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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