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एवमनेन प्रकारेण पूर्वोक्त ेन सीलगुणाणं - शीलगुणाननेकभेदभिन्नान्, सुत्तत्यवियप्पदो सूत्रार्थविकल्पतः सूत्रार्थेन च, विजाणित्ता - विज्ञाय विशेषतो ज्ञात्वा, जो पालेवि - यः पालयति, विसुद्धो – विशुद्धः
जाप्रत
ऐसे ही आलाप के पूछे जाने पर १ अंक रखकर ऊपर से शील के भेदों से गुणा करके अनंकित अंक घटाने से पूर्वोक्त विधि से अभीष्ट संख्या आ जाती है ।
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इसी प्रकार से चौरासी लाख उत्तर गुणों को निकालने के लिए संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, मष्ट तथा समुद्दिष्ट इन पाँच प्रकारों को समझना चाहिए। उसके भंग और आलापों को समझने के लिए भी ये यन्त्र बनाये जा सकते हैं ।
ra शील और गुणों का उपसंहार करते हुए कहते हैं
गाथार्थ - इस प्रकार से शील और गुणों को सूत्र और अर्थ के विकल्प से जानकर जो पालन करते हैं वे विशुद्ध होकर सर्वं कल्याण प्राप्त करते हैं ॥१०४३॥
प्राचारवृत्ति - जो मुनि सूत्र और अर्थ से अनेक भेद रूप शीलों और गुणों को जानकर अठारह हज़ार शीलों का समप्रस्तार की अपेक्षा दूसरा यन्त्र
चेतन
कृत
०
मन
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स्पर्शन
शीलगुणानामुपसंहारगाथामाह
०
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अचेतन
२
एवं सीलगुणार्ण सुत्तत्थवियप्पदो विजाणित्ता ।
जो पादि विसुद्धो सो पावदि सव्वकल्लाणं ॥ १०४३॥
स्वप्न
२
कारित अनुमोदन
*
5
वचन
१२
रसना
३६
काय
२४
घ्राण
७२
चक्षु
१०८
श्रोत्र
चिता दर्शनेच्छा दीर्घ-नि. १५० ३६० विषयाभि. वस्तिमोक्ष प्रणीतरस संसक्तद्रव्य शरीरा. पा. प्रेमि स १५०० ३६०० ५४०० ७२०० ६०००
१४४
[ मूलाबारे
ज्वर
दाह
५४० ७२०
| आ. रुचि मूर्च्छा
६००
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उन्माद जीवन सं. १२६० १४४०
मरण १०८० १-२० शरीर-सं. अ. भोगस्म अ. भोगा. इष्टविषय १०८०० | १२६०० | १४४०० | १६२००
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