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________________ शीलगुणाधिकारः ] [ २०१ शील के इन तीनों प्रकार के भेदों को निकालने के लिए क्रमश: संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट तथा समुद्दिष्ट इन पाँच प्रकारों को समझना चाहिए। इन शीलों के भी समप्रस्तार और विषमप्रस्तार की अपेक्षा गूढ यन्त्र बन जाते हैं : यदि किसी ने पूछा कि १६४४३ वाँ भंग कौन-सा है तो इस संख्या में १० का भाग देने पर १६४४३÷१०÷१६४४ लब्ध आये और शेष ३ रहने से, 'प्रणीत रससेवन' ग्रहण करना तथा लब्ध में एक मिलाकर पुनः १० से भाग देने पर १६४५ ÷ १० = १६४ आये । यहाँ पर शेष में ५ होने से 'दाह' लेना तथा लब्ध में १ मिलाकर ५ से भाग देने से १६५ : ५ ३३ आये । यहाँ शेष में शून्य होने 'कर्णेन्द्रिय' लेना । फिर लब्ध को ३ से भाग देने से ३३ : ३ – ११ आये, यहाँ भी शेषः शून्य होने से 'काययोग' लेना । पुनः लब्ध में ३ का भाग देने पर (११ ÷ ३) यहाँ शेष में २ होने से 'कारित' लेना तथा लब्ध ३ में १ मिलाकर २ से भाग देने पर (४ : २ = २) शेष में शून्य होने से 'स्वप्न' लेना । फिर २ लब्ध में २ का भाग देने पर शेष में शून्य होने से अन्तिम ' अचेतन' लेना । अब इसका उच्चारण ऐसा करना कि 'प्रणीत रस सेवनत्यागी, दाहबाधारहित, कर्णेन्द्रियविषय- विरत, काय गुप्तियुक्त, कारित दोषरहित, स्वप्न दोषरहित एवं अचेतनस्त्रीविरक्त मुनि' १६४४३ वें भंग के धारक होते हैं । अठारह हज़ार शीलों का विषम प्रस्तार की अपेक्षा यन्त्र विषयाभि. वस्तिमोक्ष, प्रणीत संसक्त द्र. से शरीरांगो. प्रेमि-स. शरीर सं. अतीत भो. अना. भो | इष्ट वि. 5 ७ r १ २ ५ & ३ १० ६ चिंता 0 स्पर्शन रसना १०० मनोयोग ! वचनयोग काययोग ५०० १००० 0 ० कृत ० दर्शनेच्छा दीर्घ निः. १० २० जागृत स्वप्न ० ४५०० चेतन कारित अनुमोदना | १५०० ३००० अचेतन ६००० घ्राण २०० Jain Education International ज्वर ३० चक्षु ३०० दाह ४० श्रोत्र ४०० आहार- रु. मूर्च्छा ६० ५० उन्माद जीवन सं. ७० १. गोम्मटसार जीवकाण्ड (श्रीमद् रामचन्द्रग्रन्थमाला से प्रकाशित ) गाथा ६५ के टिप्पण से । For Private & Personal Use Only ८० मरण ६० www.jainelibrary.org
SR No.001839
Book TitleMulachar Uttarardha
Original Sutra AuthorVattkeracharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages456
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Religion, & Principle
File Size10 MB
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