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मनगर भावनाधिकारः ]
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चित्तवृत्तयः, उपेक्षाशीलाः सर्वोपसर्ग सहनसमर्था भवन्ति, मध्यस्थाः समदर्शिनः, निभृताः संकुचितकरचरणाः कूर्मवत् अलोला निराकांक्षाः, अशठा मायाप्रपंचरहिताः, अविस्मिताः कामभोगेषु कामभोगविषये विस्मयरहिताः कृतानादरा इति ॥ ५०६ ॥
तथा
जिणवयणमणुगणेता संसारमहम्भयं हि चितता । भवसदी भीदा भीदा पुण जम्ममरणेसु ॥ ८०७ ॥
जिनवचनमनुगणयतोऽर्हदागम रंजितमतयः, संसारान्महद्भयं चिन्तयंतः संत्रस्तमनसः, गर्भवसतिषु गर्भवासविषये भीताः सुष्ठु त्रस्ताः पुनरपि जन्ममरणेषु भीता जातिजरामरणविषये च सम्यग्भीता इति ॥ ८०७॥
कथं कृत्वा गर्भवसतिषु भीता इत्याशंकायामाह -
घोरे णिरयसरिच्छे कुंभीपाए सुपच्चमाणाणं । रुहिरचलाविलपउरे वसिदव्वं गब्भवसदीसु ॥ ८०८ ॥
घोरे भयानके नरकसदृशे कुंभीपाके "व्यथां कृत्वा संदहनं कुंभीपाकः " तस्मिन् सुपच्यमानानां सुष्ठु संतप्यमानानां कर्त्तरि षष्ठी" तेन सुपच्यमानैरित्यर्थ, रुधिरचलाविलप्रचुरे रुधिरेण चले आविले वीभत्सेऽथवा वीभत्सेन प्रचुरे वस्तव्यं स्थातव्यं, उदरे गर्भे एवंविशिष्टे गर्भे या वसतयस्तासु वस्तव्यमस्माभिरहो _इति ॥ ५०८ ||
श्रम से, क्षुधा पिपासा, ज्वर आदि परीषहों से चित्त में खेद (खिन्नता) नहीं लाते हैं । सर्व उपसर्गों को सहन करने में समर्थ होते हैं । समदर्शी रहते हैं। कछुए के समान हाथ-पैरों को अथवा को संकुचित करके रहते हैं - अर्थात् इन्द्रियविजयी होते हैं । कांक्षा रहित होते हैं । माया प्रपंच से रहित होते हैं । तथा काम और भोगों में आश्चर्य नहीं करते हैं, अर्थात् उनमें अनादर भाव रखते हैं ।
उसी प्रकार से -
गाथार्थ - वे जिन वचनों का अनुचितन करते हुए तथा संसार के महान् भय का विचार करते हुए गर्भवास से भीत रहते हैं तथा जन्म और मरणों से भी भयभीत रहते हैं । ८०७ ॥ आचारवृत्ति -- वे अर्हतदेव के आगम में अपनी बुद्धि को अनुरंजित करते हैं, संसार से सन्त्रस्त चित्त होते हुए गर्भवास में रहने से अतिशय भयभीत रहते हैं, पुनः जन्म, जरा और मरण से भी अतिशय भीत रहते है ।
गर्भवास से क्यों भयभीत होते हैं ? सो ही बताते हैं
गाथार्थ -नरक के समान भयंकर सन्तप्यमान कुम्भीपाक सदृश रुधिर के चलायमान कीचड़ से व्याप्त गर्भवास में रहना पड़ेगा । ॥८०८ ॥
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श्राचारवृत्ति - घोर भयानक, नरक के सदृश, कुम्भीपाक- –व्यथा को देकर जलाना सो कुम्भीपाक हैं, उसमें खूब ही सन्तप्त होते हुए और रुधिर चल बीभत्स घृणित अर्थात् दुर्गंध की प्रचुरता से युक्त ऐसे माता के गर्भ में मुझे रहना पड़ेगा । अर्थात् उपर्य ुक्त निद्य गर्भ में मुझे नव महीने निवास करना पड़ेगा । अहो ! बड़े खेद की बात है ।
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