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शीलगुनाधिकारः]
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तप: अनशनावमौदर्यादिलक्षणम् । छेदो-छेद: दिवसमासादिना प्रवज्याहापनम् । मुलं-पुनर्दीक्षाप्रापणम् । पि य-अपि च । परिहारो चेव-परिहारपचव पक्षमासादिविभागेन दूरतः परिवर्जनं परिहारः । सहहनाश्रद्धानं सावद्यगतस्य मनस: मिथ्यादुष्कृताभिव्यक्तिनिवर्त्तनं, एते दश विकल्पा विपरीतदोषा भवन्ति । एतैः पूर्वोक्तानि अष्टलक्षाभ्यधिकचत्वारिंशत्सहस्राणि गणितानि चतुरशीतिलक्षसावद्यविकल्पा भवन्ति तद्विपरीतास्तावन्त एव गुणा भवन्तीति ।।१०३३॥ गुणोत्पादनक्रममाह
पाणादिवादविरदे, अदिकमणदोसकरणउम्मुक्के । पुढवीए पुढवीपुण'रारंभसुसंजदे धीरे ॥१०३४॥ इत्थीसंसग्गविजुवे आकंपियदोसकरणउम्मुक्के ।
आलोयणसोधिजुवे आदिगुणो सेसया णेया ॥१०३५॥ पाणादिवावविरदे-प्राणातिपातो हिंसा तस्मात्प्राणातिपाताद्विरत उपरतस्तस्य तस्मिन्वा प्राणातिपातविरतस्य प्राणातिपातविरते वा। अविकमणदोसकरणउम्मुक्के-अतिक्रमणमेव दोषस्तस्य करणं अतिक्रमणदोषकरणं तेनोन्मुक्तः परित्यक्तस्तस्य तस्मिन्वाऽतिक्रमणदोषकरणोन्मुक्तस्यातिक्रमणदोषकरणोन्मुक्त वा।
तप–अनशन, अवमौदर्य आदि तपों के द्वारा दोषों की शुद्धि तप प्रायश्चित्त है। छेद-दिवस, मास मादि से दीक्षा को कम कर देना छेद-प्रायश्चित्त है। मूल-पुनः दीक्षा देना मूल-प्रायश्चित है।
परिहार-पक्ष, मास आदि के विभाग से मुनि को संघ से दूर कर देना परिहारप्रायश्चित्त है।
श्रद्धान–सावद्य में मन के जाने पर मिथ्यात्व और पाप से मन को हटाना श्रद्धान नाम का प्रातश्चित्त है।
प्रायश्चित्त के ये दश भेद हैं। इनके उल्टे दश दोष हो जाते हैं। इन दश के द्वारा पूर्वोक्त आठ लाख चालीस हजार को गुणित कर देने पर सावध के चौरासी लाख (८४००००x१०= ८४०००००) भेद हो जाते हैं तथा इनसे विपरीत उतने ही गुण होते हैं।
गुणों के उत्पन्न करने का क्रम कहते हैं
गाथार्थ-जो प्राणी हिंसा से विरत हैं। अतिक्रमण दोष से रहित हैं, पृथिवी और पथिवीकायिक के आरम्भ से मुक्त हैं। स्त्रीसंसर्ग दोष से वियुक्त हैं, आकम्पित दोष से उन्मुक्त हैं एवं आलोचना प्रायश्चित से युक्त हैं उनके प्रथम गुण होता है। इसी तरह अन्य शेष गुणों को भी जानना चाहिए ।।१०३४-१०३५॥
प्राचारवृत्ति-हिंसा आदि इक्कीस को पंक्त्याकार से स्थापित करके उसके ऊपर अतिक्रमण आदि चार को स्थापित करें। पुनः इसके ऊपर पृथिवी आदि सो को स्थापित करें। उसके ऊपर स्त्रीसंसर्ग आदि दश दोषों को व्यवस्थापित करके, उसके ऊपर आकम्पित आदि दश दोषों को स्थापित करें । पुनः इस पंक्ति के ऊपर आलोचना आदि दश शुद्धियों की
१. क आरम्भ ।
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