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समयसाराधिकारः ]
जदि पदि दीवहत्थो श्रवडे किं कुणदि तस्स सो दीवो । जदि सिक्खिऊण प्रणयं करेदि कि तस्स सिक्खफलं ॥ १०८ ॥
ननु शिक्षाफलेन भवितव्यमित्याशंकायामाह - यदि प्रदीपहस्तोऽप्यवटे कूपे पतति ततः किं करोति तस्यासी प्रदीपः । प्रदीपो हि गृह्यते चक्षुरिन्द्रियसहकारित्वेन हेयोपादेयनिरूपणाय च तद्यदि न कुर्यातहि तद्ग्रहणं न किंचित्प्रयोजनं एवं यदि 'श्रुतज्ञानं शिक्षित्वा सम्यगवधार्यानयं चारित्रभंगं करोति किं तस्य शिक्षाफलं यावता हि न किचित् । श्रुतावधारणस्यैतत्फलं चारित्रानुष्ठानं तद्यदि न भवेच्छ तमप्यश्रुतकंरूपमर्थक्रियाभावादिति ॥ ९०८ ॥
एवं चारित्रस्य प्राधान्यमुपन्यस्य शुद्धिकारणमाह
पिंड सेज्जं उर्वाध ऊग्गमउपायणेसणादीहिं । चारित्तरक्खण सोधणयं होदि सुचरितं ॥ १०६॥
पिंडं भिक्षा, शय्यां वसत्यादिकं उपधि ज्ञानोपकरणं शौचोपकरणं चेति उद्गमोत्पादनंषणादिभ्यो दोषेभ्यः शोधयंश्चारित्ररक्षणार्थं सुचरित्रो भवति । अथवा चारित्ररक्षणार्थं पिंडमुपधि शय्यां च शोधयतः
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गाथार्थ - यदि दीपक हाथ में लिये हुए मनुष्य गर्त में गिरता है तो उसके लिए भी दीपक क्या कर सकता है ? यदि कोई शिक्षित होकर भी अन्याय करता है तो उसके लिए शिक्षा का फल क्या हो सकता है ? ॥ १०८ ॥
आचारवृत्ति - शिक्षा का फल होना ही चाहिए सो ही कहते हैं- दीपक चभु इन्द्रियका सहकारी होने से उसे हेय तथा उपादेय दिखलाने के लिए लिया जाता है। यदि कोई उस दीपक से वह कार्य न करे तो उस दीपक के ग्रहण से कुछ भी प्रयोजन नहीं है । उसी प्रकार से यदि कोई श्रुतज्ञान को पढ़कर, अच्छी तरह उसका अवधारण करके भी चारित्र को भंग कर देता है तो फिर उसकी शिक्षा का फल क्या है ? अर्थात कुछ भी नहीं है । तात्पर्य यही है कि श्रुत के शिक्षण का फल है चारित्र का अनुष्ठान करना। यदि वह नहीं है तो वह श्रुत भी अश्रुत के सदृश है क्योंकि वह अपने कार्य को नहीं कर रहा है ।
१. क० पुनर्ज्ञानं ।
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इस प्रकार से चारित्र की प्रधानता को कहकर अब शुद्धि के कारणों को कहते हैंगाथार्थ - चारित्र की रक्षा के लिए उद्गम, उत्पादन और एषणा आदि के द्वारा आहार, वसतिका और उपकरण का शोधन करता हुआ सुचारित्र सहित होता है ||६||
श्राचारवृत्ति - पिण्ड - आहार, शय्या - वसतिका आदि, उपधि - ज्ञानोपकरण- शास्त्र और शौचोपकरण-कमण्डलु हैं । इनका उद्गम, उत्पादन और एषणा आदि दोषों से शोधन करते हुए मुनि चारित्र की रक्षा के लिए सुचारित्रधारी होते हैं । अथवा चारित्र रक्षा हेतु आहार, उपकरण और वसतिका का शोधन करते हुए मुनि के ही सुचारित्र होता है। इनमें उद्गम, उत्पादन
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