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बनणार भावनाधिकारः ]
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विनयार्थसंयुक्तानि विन्यप्रतिपादकानि सूक्ष्मार्थसंयुक्तानि च यः पठति भक्तियुक्तस्तस्य प्रणश्यन्ति पापानि दुरितानीति ||७७२ ||
पुनरपि सुत्राणां स्तवनमाह'--
निःशेषदर्शकानीमानि सूत्राणि सर्वशोभनाचार सिद्धांतार्थप्रतिपादकान्येतानि सूत्रपदानि धीर - जमानां तीर्थंकर गणधरदेवानां बहुमतानि सुष्ठु मतानि बाहुल्येन वाभिमतानि, उदाराणि स्वर्गापवर्गफलयानि, अनगारभावनानीमानि शोभन श्रमणानां परिकीर्तनानि सुसंयतजन कीर्तनख्यापकानि शृणुत हे साधुजना: ! बुध्यध्वमिति ॥ ७७३ ॥ ॥
न केवलमेतानि वक्ष्ये महर्षीणां गुणांश्च वक्ष्यामीत्याह
णिस्सेसदेसिदमिणं सुत्तं धीरजणबहुमदमुदारं ।
अणगार' भावणमिणं सुसमणपरिकित्तणं सुणह ॥ ७७३ ॥
चारवृत्ति - अनगार सूत्र दस प्रकार के अधिकार से निबद्ध हैं । नव अथवा ग्यारह नहीं हैं । ये विनय के प्रतिपादक हैं और सूक्ष्म अर्थ से सहित हैं । जो भव्य भक्ति युक्त होकर इनको पढ़ता है उसके पाप नष्ट हो जाते हैं ।
णिग्गंथमहरिसीणं अणयारचरितजुत्तिगुत्ताणं ।
णिच्छिदम हातवाणं वोच्छामि गुणे गुणधराणं ॥ ७७४ ॥
निर्ग्रन्थमहर्षीणां सर्वग्रन्थविमुक्तयतीनां, अनगारचरित्रयुक्ति गुप्तानां अनगाराणां योऽयं चारित्र
पुनरपि इन सूत्रों का स्तवन करते हैं
गाथार्थ -- ये सूत्र निःशेष शोभनाचार आदि सब सिद्धान्तों के दर्शक हैं, धीर जनों से बहु मान्य हैं, उदार हैं और सुश्रमण की कीर्ति करने वाले हैं। इन अनगार भावनाओं को (शृणुत) तुम मुनो। ।।७७३ ||
कहते हैं
आचारवृत्ति - ये अनगार सूत्र सर्वशोभन आचार - सिद्धान्त- अर्थ के प्रतिपादक हैं । अर्थात् प्रशस्त आचार के प्रतिपादक जो आचार ग्रन्थ हैं उनका अर्थ कहनेवाले हैं। धीरजनतीर्थंकर, गणधर, देव आदि के लिए अतिशय मान्य हैं या बहुलता उनके द्वारा स्वीकृत हैं । उदार-स्वर्ग और मोक्ष फल के देनेवाले हैं, सुसंयत जनों के गुणों का ख्यापन करने वाले हैं । हे साधुजन ! आप लोग इन अनगार सूत्रों को सुनो और उन्हें समझो ।
मैं केवल इन्हें ही नहीं कहूँगा; किन्तु महर्षियों के गुणों को भी नहीं कहूँगा, ऐसा
गाथार्थ -- अनगार के चरित्र से सहित महातप में लगे हुए, गुणों को धारण करनेवाले निग्रंथ महर्षियों के गुणों को मैं कहूँगा || ७७४ | आचारवृत्ति - अनगार मुनियों का जो चरित्र योग है, उससे जो संवृत हैं; अर्थात् जो
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१. सूचनमाह क० । २. अणमार क० ।
३. वीर द० क०
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