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दुल्ललाहं लद्ध ण बोधि' जो णरो पमादेज्जो । सो पुरसो कापुरिसो सोयदि कुर्गाद गदो संतो ॥७६१॥
दुर्लभलाभां बोधि संसारक्षयकरणसमर्थां यो लब्ध्वा प्राप्य प्रमादयेत् प्रमादं कुर्यात्सः पुरुषः कापुरुषः कुत्सितः पुरुषः शोचति दुःखी भवति कुर्गाति नरकादिगति गतः सन्निति ॥ ७६१॥
बोधिविकल्पं तत्फलं च प्रतिपादयन्नाह
उवसमखयमिस्सं वा बोधि लद्ध ण भवियपुंडरिओ । तवसंजमसंजुत्तो अक्खयसोक्खं तदो लहदि ॥ ७६२ ॥
[ मुलाबारे
क्षयोपशमविशुद्धि देशना प्रायोग्यलब्धीर्लब्ध्वा पश्चादधः प्रवृत्यपूर्वानिवृत्तिकरणान् कृत्वोपशमक्ष योपशमक्षयरूपां' बोधि लभते जीवः । पूर्वसंचितकर्मणोऽनुभाग स्पर्द्धकानि यदा विशुद्ध्या प्रतिसमयमनंतगुणहीनानि भूत्वोदीर्यन्ते तदा क्षयोपशमलब्धिर्भवति । प्रतिसमयमनंत गुणहीन क्रमेणोदीरितानुभागस्पद्धं कजनितजीवपरिनामः सातादिसुखकर्मबंधनिमित्तोऽ नाता द्यसुखकर्मबंधविरुद्ध विशुद्धि लब्धिर्नाम । षड्द्रव्यनवपदार्थोपदेशकत्रचार्याद्युपलब्धिर्वोपदिष्टार्थग्रहणधारणविचारणशक्तिर्वा देशनालब्धिर्नाम । सर्वकर्मणामुत्कृष्ट स्थिति मुत्कृष्टानुभागं च हत्वाऽन्तः कोट्यकोटीस्थितो द्विस्थानानुभागस्थानं प्रायोग्यलब्धिर्नाम । तथोपरिस्थिपरिणामैरधः स्थितपरिणामाः समाना अधः स्थितपरिणाम रुपरिस्थितपरिणामाः समाना भवन्ति यस्मिन्नवस्थाविशेषकालेऽअधः प्रवर्त
गाथार्थ - जो मनुष्य दुर्लभता से मिलनेवाली बोधि को प्राप्त करके प्रमादी होता है वह पुरुष कायर पुरुष है । वह दुर्गति को प्राप्त होता हुआ शोच करता है ।।७६१ ।।
श्राचारवृत्ति - संसार का क्षय करने में समर्थ ऐसी दुर्लभता से मिलनेवाली बोधि को प्राप्त करके जो प्रमाद करता है वह पुरुष निन्द्य पुरुष है । वह नरक आदि गतियों को प्राप्त होकर दुःखी होता रहता है।
बोधि के भेद और उसका फल बताते हुए कहते हैं
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गाथार्थ - श्रेष्ठ भव्य जीव उपशम, क्षायिक या क्षायोपशमिक सम्यक्त्व को प्राप्त करके जब तप और संयम से युक्त हो जाता है तब अक्षय सौख्य को प्राप्त कर लेता है ॥७६१ ॥ आचारवृत्ति - क्षयोपशमलब्धि, विशुद्धिलब्धि, देशनालब्धि और प्रायोग्यलब्धि इन चार लब्धियों को प्राप्त करके यह जीव पुनः अधःप्रवृत्तिकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण परिणामों को करके उपशम सम्यक्त्व, क्षयोपशम सम्यक्त्व अथवा क्षायिक सम्यक्त्व रूप बोधि को प्राप्त कर लेता है । सो ही स्पष्ट करते हैं
१. जिस काल में पूर्वसंचित कर्म के अनुभागस्पर्धक परिणामविशुद्धि से प्रति समय अनन्तगुणितहीन होकर उदीरणा को प्राप्त होते हैं तब उस जीव के क्षयोपशम-लब्धि होती है ।
२. प्रतिसमय अनन्तगुणितहीन क्रम से उदीरणा को प्राप्त हुए अनुभागस्पर्धक से जीव के जो परिणाम होते हैं उनके निमित्त से साता आदि सुखदायी कर्मों का बन्ध होता है और असाता आदि दुःखदायी कर्मबन्ध का निरोध हो जाता है। इसका नाम विशुद्धि-लब्धि है । ३. छह द्रव्य, नव पदार्थ का उपदेश करनेवाले आचार्य आदि की उपलब्धि होना १. जो बोधि क० २. क्षयसम्यक्त्वरूपां क०
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