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माक्षशास्त्र सटीक आस्त्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात ( तत्त्वम् ) तत्त्व ( सन्ति )
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जीव- जिसमें ज्ञानदर्शनरूप चेतना पाई जावे उसे जीव कहते हैं। अजीव- जिसमें चेतना न पाई जावे उसे अजीव कहते हैं। आस्रव- बन्धके कारणको आस्रव कहते हैं। बन्ध- आत्माके प्रदेशोंके साथ कर्मोका दूध-पानीकी तरह मिल
जाना बन्ध है। संवर- आस्रवके रूकनेको संवर कहते हैं। निर्जरा- आत्माके प्रदेशोंसे पहले बन्धे हुए कर्मोका एकदेश पृथक
होना निर्जरा है। मोक्ष- समस्त कर्मोके बिलकुल क्षय हो जानेको मोक्ष कहते हैं ॥४॥ सात तत्त्व तथासम्यग्दर्शन आदिके व्यवहारके कारणनामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः ॥५॥
अर्थ-(नामस्थापनाद्रव्यभावतः ) नाम, स्थापना, द्रव्य और भावसे (तत् न्यासः) उन सात तत्वों तथा सम्यग्दर्शन आदिका लोकव्यवहार ( भवति) होता है। नाम आदि चार पदार्थ ही चार निक्षेप कहलाते हैं।
नामनिक्षेप- गुण, जाति, द्रव्य और क्रियाकी अपेक्षाके विना ही इच्छानुसार किसीका नाम रखनेको नामनिक्षेप कहते हैं। जैसे किसीका नाम 'जिनदत्त' है। यद्यपि वह जिनदेवके द्वारा नहीं दिया गया है तथापि लोकव्यवहार चलानेके लिये उसका जिनदत्त नाम रख लिया गया है।
स्थापनानिक्षेप- धातु काष्ठ पाषाण आदिकी प्रतिमा तथा अन्य पदार्थोमें यह वह है' इस प्रकार किसीकी कल्पना करना स्थापनानिक्षेप
2. इन्हीं सात तत्वोंमें पुण्य और पाप मिला देनेसे ९ पदार्थ हो जाते हैं। यहां उनका आस्रव और बन्धमें अन्तभाव हो जानेसे अलग कथन नहीं किया है। 3. प्रमाण और नयके अनुसार प्रचलित हा लोकव्यवहारको निक्षेप कहने है।
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