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पंचम अध्याय अणु- जिसका दूसरा विभाग न हो सके ऐसे पुद्गलको अणु कहते हैं।
स्कन्ध- दो तीन संख्यात असंख्यात तथा अनन्त परमाणुओंके पिण्डको स्कन्ध कहते हैं ॥ २५ ।।
स्कन्धोंकी उत्त्पतिका कारणभेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते॥२६॥
अर्थ- पुद्गलद्रव्यके स्कन्ध, भेद-बिछुड़ने, संघात-मिलने और भेद संघात-दोनोंसे उत्पन्न होते हैं। जैसे १०० परमाणुवाला स्कन्ध है उसमेंसे १० परमाणु बिखर जानेसे ९० परमाणुवाला स्कन्ध बन जाता है
और उसीमें १० परमाणु मिल जानेसे ११० परमाणुवाला स्कन्ध बन जाता है और उसीमें एकसाथ दश परमाणुओंके बिछुड़ने और १५ परमाणुओंके मिल जानेसे १०५ परमाणवाला स्कन्ध बन जाता है।।
नोट- सूत्रमें द्विवचनके स्थानमें जो बहुवचन रुप प्रयोग किया उसीसे यह तीसरा अर्थ व्यक्त हुआ है॥ २६॥
अणुकी उत्पत्तिका कारण
भेदादणुः॥२७॥ अर्थ- अणुकी उत्पत्ति भेदसे ही होती है॥२७॥ चाक्षुष ( देखनेयोग्य-स्थूल) स्कन्धकी उत्पत्ति
भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः॥२८॥
अर्थ- (चाक्षुषः) चाइन्द्रियसे देखने योग्य स्कन्ध (भेदसंघाताभ्याम् ) भेद और संघात दोनोंसे ही उत्पन्न होते हैं। अकेले भेदसे उत्पन्न नहीं हो सकते॥२८॥
द्रव्यका लक्षणसद्रव्यलक्षणम्॥२९॥ अर्थ- द्रव्यका लक्षण सत् ( अस्तित्व) है ॥२९॥
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