Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 263
________________ - २१८] मोक्षशास्त्र सटीक आधारभूत द्रव्यको परमाणु कहते हैं। इस लक्षणके करने पर परमाणुके और सब विशेषण पूर्ववत् हैं। [३१] शंका-द्वयणुकादि स्कन्धोंकी उत्पत्ति कैसे होती है ? [३१] समाधान-दो या दोसे अधिक परमाणुओंका संयोग स्निग्ध या रुक्षगुणके कारण होकर द्वयणुकादि स्कन्धोंकी उत्पत्ति होती है। 'द्वयधिकादिगुणानांतु' इस सूत्रमें गुण शब्द अविभाग प्रतिच्छेदका वाची है। गुणका यह अंश जिसमें बुद्धिसे खण्डकल्पना सम्भव नहीं। अविभाग प्रतिच्छेद कहलाता हैं। जब कोइ परमाणु जघन्य गुणवाला अर्थात् एक अविभाग प्रतिच्छेदवाला होता है तो उसका अन्य परमाणुसे किसी भी हालतमें बन्ध नहीं होता। इसी प्रकार समान गुणवालोंका परस्पर बन्ध नहीं होता, किन्तु दो अधिक गुणवालेका दो गुणहीन गुणवालेके साथ बन्ध हो जाता हैं। इससे यह फलित हुआ कि स्निग्ध गुणवालेका रुक्ष गुणवालेके साथ बन्ध होता हैं। स्निग्ध गुणवालेका स्निग्ध गुणवालेके साथ बन्ध होता हैं। रुक्ष गुणवालेका स्निग्ध गुणवालेके साथ बन्ध होता हैं और रुक्ष गुणवालेके रूक्ष गुणवालेके साथ भी बन्ध होता है। किंतु यह बन्ध परस्पर दो अधिक गुणोंके होनेपर ही होता है। और बन्ध हो जानेपर जो अधिक गुणवाला होता हैं तद्रुप दूसरा परिणम जाता है। अब यह प्रश्न होता हैं कि दो परमाणुओंका बन्ध सर्वात्मना होता है या एकदेशसे होता है ? इसका यह समाधान है कि द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा कथंचित् सर्वात्मना बन्ध होता है तो भी वे दो परमाणु एक नहीं हो जाते क्योंकि तब वे दो परमाणु द्वयणक स्कन्धके अवयव हो जाते हैं। और पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा कथंचित् एकदेशेन बन्ध होता हैं। यदि सर्वथा सर्वात्मका बन्ध मान लिया जाय तो सब पुद्गल द्रव्य एक परमाणुपनेको प्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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