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माक्षशास्त्र सटोक आने और जाने में कार्मण शरीरकी स्थिति होती है उसी प्रकार अब उनके नोकर्म वर्गणाओंके आने और जानेसे शरीरकी स्थिति होती है। माना कि केवलीके अस्त्राताका भी उदय होता है। भूख या प्यास आदिका पैदा करना असाताका काम नहीं है। ये तो अपने कारणोंसे पैदा होते हैं।
हां असाताके उदय वा उदीरणमें ये भूख व प्यास आदि नोकर्म हो सकते हैं। चूंकि जिन कारणोंसे हम संसारी जनोंको भूख व प्यास आदिकी बाधा होती हैं वे कारण केवली जिनके नहीं पाये जाते अतः उन्हें भूख व प्यास आदिकी बाधा नहीं होती। और चूंकि उन्हें भूख व प्यास आदिकी बाधा नहीं होती। इसलिये उन्हे कवलाहार आदिकी आवश्यकता नहीं पड़ती। इससे निश्चय होता है कि केवलीके कवलाहारका कथन करना अवर्णवाद है। इसी सबबसे शास्त्रकारोंने कवलाहारको केवलीका अवर्णवाद बतलाया है।
[३६] शंका-अकाम निर्जराका क्या स्वरुप है ?
[३६] समाधान-कायक्लेश आदिके जिन साधनोंसे कर्मोकी निर्जरा तो अधिकतासे हो किन्तु आत्माका विकास न होकर वह संसारमें ही परिभ्रमण करता रहे उस निर्जराको अकाम निर्जरा कहते हैं। यह जीव संसारमें अपनी इच्छाके बिना विविध प्रकारके कष्ट सहता है। कभी यह जेलखानेमें डाल दिया जाता है, कभी इसका आहार पानी रोक दिया जाता है। इससे उदयप्राप्त कर्मोकी तीव्र उदीरणा होकर वे निजीर्ण होने लगते है और अनुदयप्राप्त कर्मोकी भी यथायोग्य उदयप्राप्त कर्मोके द्वारा निर्जरा होने लगती है। इस प्रकार बिना इच्छाके जो कष्ट सहा जाता है और उससे जो कर्मोकी निर्जरा होती है उसे अकाम निर्जरा कहते हैं।
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