Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 275
________________ २२ पाई जातीपान है, कामका उदय नन्द्रदेवके ' २३०] मोक्षशास्त्र सटीक नहीं पाई जाती। तब भी जिन परीषहों के कारण ग्यारहवें आदि गुणस्थानोंमें विद्यमान है, कारणकी अपेक्षा सद्भाव वहां बतलाया। चूंकि जिनन्द्रदेवके वेदनीयकर्मका उदय है और वेदनीयकर्मके सद्भावमें ग्यारह परीषह होती है इसलिए जिनन्द्रदेवके ग्यारह परीषह कही। [४९] शंका-परीषह और उपसर्गमें क्या अन्तर है? [४९] समाधान-परीषह व्यापक है और उपसर्ग व्याप्य। उपसर्ग पर निमित्त से ही होता है और परीषहके होनेमें ऐसा कोई नियम नहीं। यही सबब है कि उपसर्गजयको अलगसे संवरका कारण नहीं कहा। उपसर्गको परीषहमें ही सम्मिलित कर लिया गया है। यह दोनोंमें अन्तर है। [५० ] शंका-परीषह और कायक्लेशमें क्या अन्तर है ? _[५०] समाधान-जो अन्तरंग या बाह्य निमित्तसे साधु की इच्छाके बिना अपने आप प्राप्त होती हैं वे परीषह है और कायक्लेश स्वयंकृत होता है। इस प्रकार इन दोनोंमें यही अन्तर है। [५१] शंका-आलोचना, प्रतिक्रमण और तदुभयमें क्या अन्तर है ? [५१] समाधान-आलोचनाके दस दोषोंसे रहित होकर गुरुके समक्ष प्रमादका निवेदन करना आलोचना नामका प्रायश्चित कहलाता है। मेरा दोष मिथ्या होओ इस प्रकार प्रतिकारका व्यक्त करना प्रतिक्रमण नामका प्रायश्चित कहलाता है। और जिसमें आलोचना तथा प्रतिक्रमण ये दोनों किए जाते है उसे तदुभय नामका प्रायश्चित कहते हैं। यद्यपि सभी प्रतिक्रमण आलोचनापूर्वक होते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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