Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 273
________________ २२८] मोक्षशास्त्र सटीक शरीर और उसकी सब अवस्थाओंका निर्माण होता है। आगममें जो गति आदि चौदह मार्गणारुप भेद किये है वे सब जीवविपाकी कर्मोके उदयादिके कार्य हैं। इसलिए जीवविपाकी कर्मोका नोआगमभाव निक्षेप भी बन जाता है। क्योंकि जो आगमभावमें कर्मफलका भोगनेवाला जीव लिया जाता है, परन्तु पुद्गलविपाकी कर्मोका नोआगम भावनिक्षेप नहीं प्राप्त होता, क्योंकि उनका फल जीवमें नहीं होता है। इसी सबबसे पुद्गलविपाकी को के नोआगमनभावका निषेध किया है। यही सबब है कि कर्मोके जीवविपाकी और पुद्गलविपाकी ये दो भेद किये गये हैं। नौवाँ अध्याय [४५] शंका-समिति संवरका कारण क्यों हैं ? [४५] समाधान-समिति अशुभ प्रवृतिके निरोधका कारण है और शुभ प्रवृतिको संकुचित करती है इस प्रकार इसमें प्रवृतिकी अपेक्षा निवृतिकी प्रधानता है अत: समितिको संवरका कारण बतलाया है। [४६] शंका-जब परीषहजय निर्जराका कारण है तो परीषहोंको बन्धका कारण मानना पड़ता है और ऐसी हालतमें बन्धके कारणोंमें परीषहोंको अलगसे गिनना चाहिये? [४६] समाधान-बन्धके कारणोंमें योगको छोड़कर शेष सारा परिवार मोहका है। योगको बन्धके कारणों में इसलिए गिनाया कि उसके निमित्तसे आत्मा कर्मोको ग्रहण करता है परन्तु कर्मोमें स्थित और अनुभागका मुख्य कारण तो कषाय ही है। अब देखना यह है कि किस कर्मके उदयसे कितनी परीषह होती है। ज्ञानावरणसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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