Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 271
________________ २२६] मोक्षशास्त्र सटीक मुख्यतः नरकगति आदिके कारण करनेके लिये यहां 'विहायम्' उपपद दिया है। वैसे पर्याप्त हो जाने पर जो प्राणधारीका गमन होता है उसमें विहायोगति नामकर्मका उदय कारण है। तात्पर्य यह है कि पर्याप्त अवस्थासे त्रस जीवोंके विहाय गति नामकर्मका उदय होता है। [ ४२ ] शंका- बन्धे हुए कर्मोंमें अनुभागका विभाग किस क्रमसे होता है ? [४२] समाधान - घातिया कर्मोका अनुभाग चार भागों में बटा है - लता, दारु, अस्थि और शैल। इनमें से लतारुप शक्ति और दारूका अनन्तवां भाग देशघाति अनुभाग है और शेष सर्वघाति अनुभाग हैं। सम्यक्त्वमें प्रकृतिमें देशघाति अनुभाग पाया जाता है। सम्यग्मिथ्यात्वमे दारुका अनन्तवां भाग सर्वघाति अनुभाग पाया जाता है मिथ्यात्वमें दारुका अनन्त बहुभाग, अस्थि और शैलरुप अनुभाग पाया जाता है। ज्ञानावरणकी चार देशघाति दर्शनावरणकी तीन देशघाति पांच अन्तराय, चार संज्वलन और पुरुषदेव इनमें लता, दारु, अस्थि और शैल या लता और दारु, या केवल लतारूप चार प्रकारका अनुभाग पाया जाता हैं । सम्यत्मिथ्यात्वके बिना शेष सब सर्वघाति, प्रकृतियोंमें शैल, अस्थि और दारुका अनन्त बहुभाग या अस्थि व दारूका अनन्त बहुभाग या दारूका अनन्त बहुभाग इस प्रकार तीन प्रकारका अनुभाग पाया जाता है। तथा पुरुषवेदके बिना शेष आठ नौ कषायोंमें शैल, अस्थि, दारु और लता या अस्थि दारु और लता या दारु और लता इस तरह तीन तरह तीन प्रकारका अनुभाग पाया जाता है। अब रहे अघातिया कर्म, सो इनके पुण्यप्रकृति और पापप्रकृति इस तरह दो भेद हैं। पुण्यप्रकृतियोंका अनुभाग गुड़, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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