Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 272
________________ शंका समाधान [२२७ खांड, शर्करा और अमृतके समान माना है, और पापप्रकृतियोंका अनुभाग नीम, कांजीर, विष और हालाहलके समान माना है। यहां भी अनुभागका तीन प्रकार में परिणमन जानना। अर्थात् पुण्य प्रकृतिसे गुड़ खांड, शर्करा और अमृतरूप या गुड़ और शर्करा रूप या गुड़ और खांड़ रूप अनुभाग होता है। और पाय प्रकृतियोंमें नीम, कांजीर, विष और हलाहल रुप या नीम, कांजीर और विषरुप या नीम और कांजीरका अनुभाग होता है। [४३] शंका-प्रदेश बन्धका विभाग किस क्रमसे होता हैं ? [४३] समाधान-यदि आयु कर्मका भी बन्ध हो रहा हैं तो आयुकर्मको सबसे थोड़ा द्रव्य मिलता है। नाम और गोत्र में प्रत्येकको इससे अधिक द्रव्य मिलता है तो भी इन दोनों कर्मोका द्रव्य समान रहता है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायमें प्रत्येकको इससे अधिक द्रव्य मिलता है तो भी इनका द्रव्य परस्पर समान होता है। इससे मोहनीय कर्मसे अधिक द्रव्य मिलता है और इससे वेदनीय कर्मको अधिक द्रव्य मिलता है। घातिया कर्मोको जो द्रव्य मिलता है उसमें सर्वघाति द्रव्य सब घातिद्रव्यका अनन्तवाँ भाग होता है और देशघाति द्रव्य अनन्त बहुभाग होता है। इससे भी देशघाति द्रव्यका बटवारा देशघाति प्रकृतियोंमें ही होता है, किन्तु सर्वघाति द्रव्यका बटवारा देशघाति और सर्वघाति दोनों प्रकारकी प्रकृतियोंमें होता है। परन्तु नौ नोकषायोंको देशघाति द्रव्य ही प्राप्त होता है, सर्वघाति नहीं। इस प्रकार यह प्रदेशबन्ध विभागका क्रम जानना। [४४] शंका-कर्मोके जीवविपाकी और पुद्गलविपाकी इस प्रकार भेद करनेका कारण क्या है ? [४४] समाधान-जीवविपाकी कर्मोके उदयसे जीवकी अवस्थाओंका निर्माण होता है और पुद्गलविपाकी कर्मोके उदयसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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