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शंका समाधान
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[३७] शंका-सम्यक्त्व तो आत्माका गुण है वह आयुकर्मके आस्त्रवका कारण कैसे हो सकता है ?
[३७] समाधान-सम्यक्त्वके रहनेपर तिर्यञ्च और मनुष्योंके देवायुका ही आस्रव होता है यह बतलानेके लिये सम्यक्त्वको भी आस्त्रवके कारणों में गिन दिया है। सराग संयम और संयमासंयमको भी आस्रवके कारणोंमें गिनाया है। यहां भी इसी प्रकार समझ लेना चाहिये। अन्यत्र जहां भी आत्मपरिणाम आस्त्रवके कारण बतलाये हो वहां यही समझना चाहिये कि उन परिणामोंके होनेपर ही जीवके उस प्रकारकी योग्यता होती है।
सातवां अध्याय
[३८] शंका-अतिचार और अनाचारोंमें क्या अन्तर है ?
[३८] समाधान-जिस व्रतकी जो मर्यादा है उसका अतिक्रम करके आचरण करनेको अतिचार कहते हे और व्रतके विरुद्ध आचरणको अनाचार कहते हैं। अतिचारके होनेपर व्रत सदोष हो जाता है और अनाचरणके होनेपर व्रतका भंग हो जाता हैं।
तात्पर्य यह है कि जब व्रतके रक्षाकी भावना रहते हुए मर्यादाका उल्लंघन होता है तब अतिचार दोष लगता है और जब जीव व्रतकी रक्षाकी भावनाका त्याग करके विरुद्ध आचरण करने लगता है तब अनाचार होता है। अतिचारमें एकदेश व्रतका भंग है
और अनाचारमें व्रतका पूरा भंग है। एकदेश व्रतका भंग कभी क्रिया द्वारा और कभी भावना द्वारा होता है और सर्वदेश व्रतका भंग व्रतकी
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