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मोक्षशास्त्र सटोक इन्द्र बारह ही हैं। इसलिए जब इनकी मुख्यतासे विवक्षा हो जाती है तब कल्प बारह प्राप्त होते हैं।
त्रिलोकसारकी गाथा ४५२ और ४५३ में जो सोलह और ४५४ में बारह कल्प बतलाये हैं वहाँ भी वही विवक्षा मुख्य रखी हैं। इस प्रकार सोलह स्वर्गोकी मान्यताके साथ बारह स्वर्गोकी मान्यताका सहज मेल बैठ जाता हैं। यह विवक्षाभेद है, मान्यताभेद नहीं।
पांचवा अध्याय[२७] शंका-छह द्रव्योंका अस्तित्व किसपर सिद्ध होता है ?
[२७] समाधान-आत्माका अस्तित्व अनुभवगम्य है। भौतिक या जड़ पदार्थोसे आत्मा भिन्न है यह अनुभवसे जाना जाता है। चेतन
और अचेतनका विभाग आत्माके अस्तित्व पर ही निर्भर है। ज्ञान ओर दर्शन आदिका अन्वय आत्माको छोड़कर अन्यत्र नहीं प्रतीत होता, इससे मालूम पड़ता है कि आत्मा है। रुप रस आदि गुणवाला पुद्गल तो स्पष्ट ही है। अब रहे धर्मादिक चार द्रव्य सो इनका अस्तित्व इनके कार्योसे जाना जाता है। धर्म द्रव्यका कार्यगमन करनेवाले जीव और पुद्गलोंके गमनमें सहायता करना है। अधर्म द्रव्यका कार्य ठहरनेवाले जीव और पुद्गलोंके ठहरने में सहायता करता है। आकाश द्रव्यका कार्य सबको अवकाश देता है और कालद्रव्यका कार्य सबके परिणमनमें सहायता करना है। कारण दो प्रकारके होते हैं-साधारण कारण और असाधारण कारण। जो सबके लिए समान कारण हो उसे साधारण कारण कहते हैं। और प्रत्येक कार्यके अलग अलग कारणको असाधारण कारण कहते हैं। ये धर्मादिक द्रव्य गति आदि कार्यके साधारण कारण हैं। इसलिए इनका अस्तित्व सिद्ध होता है। इस प्रकार द्रव्य छह हैं यह सिद्ध होता हैं।
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