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मोक्षशास्त्र सटीक क्षेत्रको देवकुरु और उत्तरकी ओर गजदंतोके मध्यके क्षेत्रको उत्तरकुरु कहते हैं। तथा पूर्व दिशाका सब क्षेत्र पूर्व विदेह और पश्चिम दिशाका सब क्षेत्र पश्चिम विदेह कहलाता है। पहले और तीसरे और चौथे भाग के दो-दो भाग और हो जाते है। इस प्रकार तीसरे और चौथे भागके कुल चार भाग हुए। इन चार भागोंमेंसे भी प्रत्येक भागकी नदियों और पर्वतोंके कारण आठ आठ भाग हो जाते हैं। ये कुल बत्तीस हुए। यही बत्तीस विदेह हैं। इनमें भरत और ऐरावत क्षेत्रके समान आर्य और म्लेच्छ खण्ड स्थित हैं। विभूतिवाले नारायण आदि व तीर्थंकर आर्य खण्डोंमें उत्पन्न होते हैं। जम्बूद्वीप में कुल चौतीस ढाईद्वीपमें एकसौ सत्तर आर्यखण्ड हुए। तीर्थंकरोंकी उत्कृष्ट संख्या १७० बतलाई है वह इसी अपेक्षासे बतलाई है। विदेहोंमें जो सीमंधर आदि बीस तीर्थंकर कहे गये हैं वे ढाईद्वीपके बीस महाविदेहोंकी अपेक्षासे कहे गए जानना चाहिए। क्योंकि पूर्वोक्त विभागानुसार जम्बूद्वीपके चार महाविदेह हुए। अतः ढाईद्वीपके बीस महाविदेह होते हैं। विशेष विधि त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थोंसे जान लेना चाहिए।
[२४] शंका-तीन लोकमें अकृत्रिम चैत्यालय कहाँ कहाँ हैं ?
[२४] समाधान-चित्रा पृथ्वीके नीचे भवनवासियोंके भवनोंमें सात करोड बहत्तर लाख अकृत्रिम चैत्यालय हैं। मध्यलोकमें तेरहवें द्वीप तक चारसो अठावन अकृत्रिम चैत्यालय हैं। व्यन्तर देवोंके भवनों में और ज्योतिषी देवोंके विमानोंमें असंख्यात चैत्यालय हैं। और उर्ध्वलोकके चौरासी लाख सत्तानवें हजार तेईस अकृत्रिम चैत्यालय हैं। मध्यलोक चैत्यालय मेरु, कुलाचल, विजया, शाल्मलीवृक्ष, जम्बूवृक्ष, वक्षारगिरि, चैत्यवृक्ष, रतिकर, दधिमुख, अञ्जनगिरि, रुचकगिरि, कुण्डलगिरि, मानुषोत्तर और इष्वाकार पर्वतों पर स्थित हैं।
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