Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 257
________________ २१२] मोक्षशास्त्र सटीक है वे अनपवर्त्य आयुवाले कहलाते है। ऐसा नियम है कि प्रत्येक कर्मकी स्थिति और अनुभागमें उत्कर्षण और अपकर्षण होता रहता हैं। किन्तु उत्कर्षण बन्धके समय ही होता हैं और अपकर्षण कभी भी हो सकता है। बन्धके समय भी हो सकता हैं और उसके बिना भी हो सकता हैं। यहां आयु कर्मका प्रकरण हैं। पूर्वोक्त नियमके अनुसार चारों गतियोंकी भुज्यमान आयुमें अपकर्षण सम्भव है इस औपपादिक चरमोत्तम इत्यादि सूत्रके द्वारा यह नियम किया गया हैं कि उपपाद जन्मवाले, चरमशरीरी और भोगभूमियां इन तीनों जीवोंकी आयु नहीं घटती। भवके प्रथम समयमें इन्हे जितनी आयु प्राप्त होती है उतने कालतक इन जीवोंको उस पर्यायमें रहना ही पड़ता है। तीसरा अध्याय[२२] शंका-नरकोंमें पटलोंके क्रमसे किस प्रकार आयु बढ़ती है ? [२२] समाधान-प्रथम नरकमें तेरह, दूसरे में ग्यारह, तीसरेमें नौ, चौथेमें सात, पांचवेंमें पांच, छठवेंमें तीन और सातवें नरकमें एक पटल है। इनमेंसे पहले नरकके प्रथम पटलमें जघन्य आयु दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट आयु नब्बे हजार वर्ष है। दूसरे पटलमें जघन्य आयु नव्वे हजार वर्ष और उत्कृष्ट आयु नव्वे लाख वर्ष है। तीसरे पटलमें जघन्य आयु एक पूर्व कोटि है। चौथे पटलमें जघन्य आयु असंख्यात पूर्वकोटि और उत्कृष्ट आयु एक सागरका दसवां भाग हैं। अगले पटलोंमें पूर्व पूर्व पटलकी उत्कृष्ट आयु उस पटलकी जघन्य आयु है और उत्कृष्ट आयुमें प्रत्येक पटलमें एक सागरके दसवें भागकी वृद्धि होती गई है। इस आयु के लानेके लिये यह नियम है कि आखिरी पटलकी उत्कृष्ट आयु में से चौथा Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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