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शंका समाधान
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हो जायेगा। और सर्वथा एकदेशेन बन्ध माना जाय तो बन्धके होनेपर हीनि गुणवाले परमाणुका अधिक गुणवाले परमाणुरूपसे परिणमन हो जाता है यह कथन नहीं बन सकता है। इस प्रकार द्वयणुकादि स्कन्धोंकी उत्पत्ति किस प्रकार होती है संक्षेपमें इसका विचार किया ।
[३२] शंका-सूत्रकारके द्वारा उक्त द्रव्यके दोनों लक्षणोंका समन्वय किस प्रकार होता है ?
[३२] समाधान- जब जिसमें गुण और पर्याय पाये जाते हैं उसे द्रव्य कहते हैं । द्रव्यका यह लक्षण किया जाता है तब गुण अन्वयी होनेसे द्रव्यके ध्रौव्यभावको सूचित करता है और पर्याय व्यतिरेक होनेसे द्रव्यके उत्पाद और व्ययभावको सूचित करता है। इसी प्रकार जिसका उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य है उसे सत् कहते हैं, सत्का यह लक्षण किया जाता है तब भी उक्त बात ही प्राप्त होती हैं। इस प्रकार तत्त्वत: विचार करनेपर इन दोनों लक्षणोंका अभिप्राय एक ही हैं इसलिए इनका समन्वय हो जाता है।
छठ्ठा अध्याय
[ ३३ ] शंका- द्रव्ययोग और भावयोगका क्या स्वरुप है ?
[ ३३ ] समाधान - आत्मप्रदेशोंके परिस्पन्दको द्रव्ययोग कहते हैं। और इसके पैदा करनेकी शक्तिको भावयोग कहते हैं। यह योग निमित्तके भेदसे तीन प्रकारका है- मनोयोग, वचनयोग और काययोग | वीर्यान्तराय कर्मके क्षयोपशमके रहते हुए शरीर नामकर्मके उदयसे औदारिकादि कायवर्गणाओं में से किसी एक प्रकारकी वर्गणाओंके आलम्बनसे जो आत्मप्रदेश परिस्पन्द होता है, यह द्रव्य
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