Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ - शंका समाधान [२१३ और जो शेष रहे उनमें नौ का भाग दे दो अनन्तर जिस पटलकी उत्कृष्ट आयु जानना हो उसकी संख्या से गुणाकार दो तो उस पटलकी उत्कृष्ट आयु आ जाती है। यहां नौ का इसलिये भाग दिलाया कि प्रारम्भके चार पटलोंकी आयु अलगसे कही है इसलिए पांचवेंसे लेकर तेरहवें तक नौ ही पटल होते हैं। इसी प्रकार अगले नरकोंके प्रत्येक पटलमें जघन्य और उत्कृष्ट आयु ले आना चाहिए। उदाहरणार्थ दूसरे नरकमें ग्यारह पटल हैं। __अब प्रथम नरककी उत्कृष्ट आयु एक सागरको दूसरे नरककी उत्कृष्ट आयु तीन सागरमेंसे घटा दो, शेष बचे दो सागर सो इसमें ग्यारहका भाग दे दो। अनन्तर जिस पटलकी आयु लाना हो तो उससे इस लब्धको गुणा कर दो और उसे प्रथम नरककी उत्कृष्ट आयुमें जोड़ दो तो इस प्रकार उस पटलकी उत्कृष्ट आयु आ जायेगी। मान लो हमें दूसरे नरकके तीसरे पटलकी उत्कृष्ट आयु जानना है तो हम पूर्वोक्त विधिके अनुसार यह क्रिया करेंगे ३-१-२-सागर १६ ११है सागर x ३= सागर, १+ 5 = १. सागर। बस यही तीसरे पटलकी उत्कृष्ट आयु होगी। इसी क्रमसे सातों नरकोंके सब पटलोंकी उत्कृष्ट आयु ले आना चाहिए, तथा अपनेसे पूर्ववर्ती पटलकी जो उत्कृष्ट आयु है वही उससे अगले पटलकी जघन्य आयु जानना।। _ [२३] शंका-विदेह क्षेत्रका वर्णन क्या है ? [२३] समाधान- विदेहक्षेत्रका विस्तार ३३६८४४ योजन हैं और मध्यमें लम्बाई एक लाख योजन है। इसके ठीक मध्यमें सुमेरु पर्वत है। सुमेरुके पाससे दो गजदंत पर्वत गोलाकार निषेधसे मिले हैं। इसी प्रकार उत्तरकी ओरसे गजदंत पर्वत नीलसे मिले हैं। इससे विदेह क्षेत्र चार भागोंमें बट जाता है। दक्षिणकी ओर गजदंतके मध्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302