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मोक्षशास्त्र सटीक नोट- उक्त सूत्रमें प्रदेशबन्धके विषयमें होनेवाले निम्र लिखित ६ प्रश्नोंका समाधान किया गया है।
(१) किसमें कारण है ? (२) किस समय होता है ? (३) किस कारणसे होता है ? (४) किस स्वभाववाला है ? (५) किसमें होता है ? और (६) कितनी संख्यावाला है ?
भावार्थ- आत्माके योग्य-विशेषों द्वारा त्रिकालमें बन्धनेवाले, ज्ञानावरणादि कर्म प्रकृतियोंके कारणभूत, आत्माके समस्त प्रदेशोमें व्याप्त होकर कर्मरुप परिणमने योग्य सूक्ष्म, आत्माके प्रदेशोंमें क्षीर-नीरकी तरह एक होकर स्थिर रहनेवाले, तथा अनन्तानन्त प्रदेशोंका प्रमाण लिए प्रदेशबन्धरुप पुद्गल स्कन्धोंको प्रदेशबन्ध कहते हैं ॥ २४॥
. पुण्यप्रकृतियांसवेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम् ॥२५॥
अर्थ-स्त्राता वेदनीय, शुभ आयु, शुभ नाम और शुभगोत्र ये पुण्य प्रकृतियां हैं।
___ नोट- घातिया कर्मोकी समस्त प्रकृतियां पापरुप है। किन्तु अघातियाँ कर्मोमें पुण्य और पाप दोनोंरुप हैं। उनमेंसे ६८ प्रकृतियां पुण्यरुप है ॥ २५॥' 1. सादं तिण्णेवाऊ उच्चं णरसुरदुगं च पंचिंदी।
देहा बन्धणसंघादंगोवगाइं बण्णचओ ॥४१॥ समचउरबजरिसहं उवधादूणगुरुछक्क सग्गामणं । तसबार ? सट्ठी, बादालमभेददो सत्था ॥४२ ।। (कर्मकाण्ड)
अर्थ सातावेदनीय, तीन आयु (तिर्यञ्च, मनुष्य, देव) उच्च गोत्र मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्व्य, देवगति, देवगत्यानुपूर्व्य, पंचेन्द्रिय जाती, पाँच देह, पांच बन्धन, पांच संघात, तीन अंगोपांग, २० वर्णादिक, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रवृषभनाराच संहनन, उपघातको छोड़कर अगुरुलघु आदि ६ (अगुरुलघु, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत). प्रशस्त विहायोगति और त्रसको आदि लेकर बादर (त्रस, बादर, पर्याप्ति, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति, प्रमाण और तीर्थंकरत्व।) इस तरह भेद विवक्षासे ६८ पुण्यप्रकृतियां हैं और अभेद विवक्षासे ४२ ही हैं क्योंकि १६ वर्णादिकके और शरीरमें अन्तर्गत हुए ५ बन्धन और ५ संघातके इस तरह २६ भेद घटानेसे ४२ होती हैं।
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