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शंका समाधान
[१९३ अर्थका श्रद्धान होता है उसे संक्षेप सम्यक्त्व कहते हैं। जीवादि पदार्थोका विस्तारसे ज्ञान होनेसे जो श्रद्धान होता है उसे विस्तार सम्यक्त्व कहते हैं। वचनोंके विस्तारके बिना अर्थके ग्रहण होनेसे जो श्रद्धान होता है उसे अर्थ सम्यक्त्व कहते हैं । आचारांग आदि बारह अंगोके मननसे जिसकी श्रद्धा दृढ़ हो गई है उसे अवगाढ़ सम्यक्त्व कहते हैं। परमावधि ज्ञानी और केवलज्ञानीके श्रद्धानको परमावगाढ़ सम्यक्त्व कहते हैं। इसी प्रकार आगमके अनुसार सम्यग्दर्शनके यथायोग्य भेद जानना चाहिए।
[३] शंका-निक्षेप व्यवस्था किस प्रकार घटित होती है ?
[३] समाधान-लोकमें जितना शब्द व्यवहार या तदाश्रित व्यवहार होता है वह कहां किस अपेक्षासे किया जा रहा है इस गुत्थीको सुलझाना निक्षेप व्यवस्थाका काम है। निक्षेपके मुख्यतः चार भेद है- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। आगे इस व्यवस्थाको ककी अपेक्षा घटित करके बतलाते है। लोकमें गुणादिककी अपेक्षा न करके जितना संज्ञा व्यवहार चालू है वह सब नाम निक्षेपका विषय है। गुणादिककी अपेक्षा जब यह व्यवहार किया जाता है तो वह नाम निक्षेपका विषय न होकर अन्य निक्षेपका विषय होता है। जैसे आगममें मनुष्यनी यह शब्द स्त्रीधर्मकी प्रधानतासे आया है अत: इसका भावनिक्षेपमें अंतर्भाव होता है। और स्त्रीवेदका नाश हो जानेके पश्चात् मनुष्यनी शब्दका व्यवहार नामनिक्षेपका विषय हो जाता है। तो भी इसका प्रयोजक मूतप्रज्ञापन नय है इसलिये आगे भी यह व्यवहार चालू रहता है। पूर्व व्यवहारसे इसमें किसी प्रकारका अन्तर नहीं होता। इससे स्पष्ट हुआ कि नाम निक्षेपमें संज्ञाकी प्रधानता है गुणादिककी नहीं, अत: जिस किसी चेतन या अचेतन पदार्थका
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