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माक्षशास्त्र सटीक [२] शंका-सम्यग्दर्शनके कितने भेद हैं ?
[२] समाधान-सामान्यसे सम्यग्दर्शन एक है। उत्पत्तिके निमित्तोंके वर्गीकरणकी उपेक्षा सम्यग्दर्शनके दो भेद हैं-निसर्गज और अधिगमज़। निसर्गका अर्थ स्वभाव है और अधिगमका अर्थ परोपदेश। तात्पर्य यह है कि जो सम्यग्दर्शन परोपदेशकी अपेक्षाके बिना उत्पन्न होता है वह निसर्गज सम्यग्दर्शन है और जो सम्यग्दर्शन परोपदेशपूर्वक उत्पन्न होता है वह अधिगमज सम्यग्दर्शन है। कर्मोके उपशमादिककी अपेक्षा सम्यग्दर्शनके तीन भेद हैं-औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक। जो दर्शन मोहनीयकी तीन प्रकृतियोंके अंतकरण उपशमसे और अनंतानुबंधी चारके उपशम या विसंयोजनासे उत्पन्न होता है उसे औपशमिक सम्यग्दर्शन कहते हैं। जो पूर्वोक्त सातों प्रकृतियोंके क्षयसे उत्पन्न होता है उसे क्षायिक सम्यग्दर्शन कहते है, तथा जो सम्यक्त्व प्रकृतिके उदयसे उत्पन्न होता है उसे क्षायोपशमिक या वेदक सम्यग्दर्शन कहते हैं। इस प्रकार उत्तरोत्तर शब्दोंकी अपेक्षा संख्यात, श्रद्धान करनेवालोंकी अपेक्षा असंख्यात और श्रद्धान करनेयोग्य पदार्थोकी अपेक्षा अनंत भेद हैं। तब भी सम्यग्दर्शनके दश भेदोंका सर्वत्र मुख्यतासे उल्लेख मिलता है। जो ये हैं आज्ञा सम्यक्त्व, मार्ग सम्यक्त्व, उपदेश सम्यक्त्व, सूत्र सम्यक्त्व, बीज सम्यक्त्व संक्षेप सम्यक्त्व, विस्तार सम्यक्त्व, अर्थ सम्यक्त्व, अवगाढ़ सम्यक्त्व और परमावगाढ़ सम्यक्त्व। जो सम्यक्त्व सर्वज्ञ जिनदेवके प्रवचनके निमित्तसे होता है उसे आज्ञा सम्यक्त्व कहते हैं। जो सम्यक्त्व निःसंग मोक्षमार्गके श्रवणमात्रसे उत्पन्न होता है उसे मार्ग सम्यक्त्व कहते हैं। जो सम्यक्त्व तीर्थंकर बलदेव आदि के शुभ चरित्र सुननेसे होता है उसे उपदेश सम्यक्त्व कहते हैं। दीक्षाकी मर्यादाके प्ररुपण करनेवाले आचारसूत्रके सुनने मात्रसे जो सम्यक्त्व होता है उसे सूत्र सम्यक्त्व कहते है। बीजपदके ग्रहणसे जो सूक्ष्म
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