Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 249
________________ - २०४] मोक्षशास्त्र सटीक [१४] शंका-सात नयोंका स्वरूप क्या है और उनमें परस्पर क्या तारतम्य है ? [१४] समाधान-जो संग्रह और असंग्रहरुप दोंनो प्रकारके विषयोंकों ग्रहण करता है उसे नैगमनय कहते है। या अर्थके अनिष्पन्न रहते हुए संकल्प मात्रको ग्रहण करनेवाला नैगमनय है। जो गुणादिककी अपेक्षा भेद न करके सबको एकरुपसे ग्रहण करता है वह संग्रहनय हैं। जो संग्रहनयके द्वारा ग्रहण किये गये पदार्थो में विधिपूर्वक भेद करता है वह व्यवहारनय है। ये तीनों द्रव्यार्थिक नय है। क्योंकि इनका विषय द्रव्य है। इसमें काल भेद नहीं पाया जाता तो भी ये उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं, क्योंकि संग्रहनय केवल संग्रहरुप पदार्थको विषय करता है परन्तु नैगमनय संग्रह और असंग्रह रूप दोनों प्रकारके पदार्थोका विषय करता है इसलिए नैगमनयके विषयसे संग्रहनयका विषय सूक्ष्म है और नैगमनयका विषय स्थूल। इसी प्रकार व्यवहारनय संग्रहनयके विषयसे विधिपूर्वक भेद करके प्रवर्तता है इसलिए संग्रहनयके विषयमें व्यवहारनयका विषय सूक्ष्म है और संग्रहनयका विषय स्थूल। जो वर्तमान पर्याय मात्रको विषय करता है उसे ऋजुसूत्रनय कहते है। लिंगादिकका व्यभिचार हटाकर जो शब्द द्वारा वर्तमान पर्यायको ग्रहण करता है उसे शब्दनय कहते है। जो शब्द जिस अर्थमें रुढ़ हो उसी शब्द द्वारा जो वर्तमान पर्यायको ग्रहण करता है वह समभिरुढ़ नय है तथा जिस शब्दका जो व्युत्पत्ति अर्थ हो तक्रियापरिणत अर्थको जो उस शब्दके द्वारा ग्रहण करता है उसे एवं भूत नय कहते हैं। ये चारों पर्यायार्थिक नय हैं इसलिए द्रव्यार्थिक नयोंसे इनका विषय सूक्ष्म है ही। फिर भी परस्पर इनका उत्तरोत्तर सूक्ष्म विषय है। ऋजुसूत्र नय लिंगादिकका भेद नहीं करता। वह शब्द व्यवहारको महत्व ही नहीं देता। इसलिए इसके विषयसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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