Book Title: Mokshshastra
Author(s): Umaswati, Umaswami, Pannalal Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 245
________________ २०० मोक्षशास्त्र सटीक विधिका और समिति तीन गुप्ति आदिका वर्णन है। विद्यानुवादमें अंगुष्ठसेना आदि सातसौ छोटी विद्याओंका रोहिणी आदि पांचसौ महाविद्याओंका और अष्टांग महानिमित्तोंका वर्णन है। अंतरीक्ष, भौम, अङ्ग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, व्यंजन और छिन्न ये आठ महानिमित्त है, इनको देखकर जो शुभाशुभका ज्ञान होता है वह निमित्त ज्ञान है। कल्याण पूर्वमें सूर्य, चंद्रमा नक्षत्र और तारागणोंके गमन, उपपाद, गतिफल आदिका तथा शलाका पुरूषों के गर्भावतरण आदि कल्याणकोंका कथन है। प्राणावाय पूर्वमें अष्टांग आयुर्वेद, भूतिकर्म जांगुलिप्रकर्म और प्राणापानके विभागका वर्णन है। शलाका कर्म, कायचिकित्सा भूततंत्र, शल्यतंत्र, अङ्गदतन्त्र, बालरक्षातन्त्र और बीजवर्द्धनतन्त्र ये अष्टांग आयुर्वेद हैं। शरीर आदिकी रक्षाके लिये जो भस्म और सूत्र आदिके द्वारा वेष्टन किया जाता है उसे भूतिकर्म कहते हैं। जांगुलिप्रकर्मका अर्थ विषविद्या है। क्रियाविशालपूर्वमें लेखन आदि बहत्तर कलाओंका और स्त्रियोमें चौसठ गुणों आदिका वर्णन है। लोकबिंदुसारमें आठ व्यवहार, चार बीज, मोक्षगमन, क्रिया और मोक्षसूत्रका वर्णन है। दृष्टिवादके पांचवें भेद चूलिकाके पांच भेद हैंजलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता। इनमें अपनेर नामानुसार विद्याओंका वर्णन है। [९] शंका-विभंगज्ञानके पहले कौनसा दर्शन होता है ? [९] समाधान-सत्यरूपणाके १३४ वें सूत्रकी टीका करते वीरसेनस्वामीने बतलाया है कि विभंगज्ञानके पहले होनेवाले दर्शनका अवधिदर्शनमें अन्तर्भाव हो जाता है। इससे इतना तो ज्ञान होता है कि विभंगज्ञानके पहले अवधिदर्शन होता है। तब भी आगममें इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है, क्योंकि अवधिदर्शन चोथे गुणस्थानमे बतलाया है और विभंगज्ञान इसके पहले होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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