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मोक्षशास्त्र सटीक आक्रोश- दुष्ट जीवोंके द्वारा कहे हुए कठोर शब्दोंको शांत भावोसे सह लेना सो आक्रोश परिषहजय है।
वध- तलवार आदिके द्वारा शरीरपर प्रहार करनेवालोंसे भी द्वेष नहीं करना सो वध परिषहजय है।
याचना- प्राणोंके वियोगका अवसर होनेपर भी आहारादिकको नहीं मांगना सो याचना परिषहजय है।
अलाभ-भिक्षाके प्राप्त न होनेपर सन्तोष धारण करना सो अलाभ परिषहजय है।
रोग- अनेक रोग होनेपर भी उनकी वेदनाको शांत भावोंसे सह लेना सो रोगपरिषहजय है।
तृणस्पर्श-चलते समय पावोंमें तृण कंटक वगैरहके चुभ जानेसे उत्पन्न हुए दुःखको सहना सो तृणस्पर्श परिषहजय है।
मलपरिषहजय- जलकायिक जीवोंकी हिंसासे बचनेके लिए स्नान न करना तथा अपने मलिन शरीरको देखकर ग्लानि नहीं करना सो मलपरिषहजय है।
सत्कारपुरस्कार- अपनेमें गुणोंकी अधिकता होनेपर भी यदि कोई सत्कारपुरस्कार न करे तो चित्तमें कलुषता न करना सो सत्कार पुरस्कार' परिषहजय है।
प्रज्ञा- ज्ञानकी अधिकता होनेपर भी मान नही करना सो प्रज्ञा परिषहजय है।
अज्ञान- ज्ञानादिककी हीनता होनेपर लोगोंके द्वारा किये हुए तिरस्कारको शांत भावोसे सह लेना अज्ञान परिषहजय है। _ अदर्शन- बहुत समय तक कठोर तपश्चर्या करने पर भी मुझे 1. प्रसंशाको सत्कार कहते है। 2. कोई कार्य करते समय अगुआ बना लेना सो पुरस्कार है।
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