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नवम अध्याय
[१६९ आचार्य- जो मुनि पञ्चाचारका स्वयं आचरण करते और दूसरोंको आचरण कराते है उन्हें आचार्य कहते है।
उपाध्याय- जिनके पास शास्त्रोंका अध्ययन किया जाता हो वे उपाध्याय कहलाते है।
तपस्वी- महान् उपवास करनेवाले साधुओंको तपस्वी कहते है। शैक्ष्य- शास्त्रके अध्ययनमें तत्पर मुनि शैक्ष्य कहलाते है। ग्लान- रोगसे पीड़ित मुनि ग्लान कहलाते है।
गण- वृद्ध मुनियोंके अनुसार चलनेवाले मुनियोंके समुदायको गण कहते है।
कुल- दीक्षा देनेवाले आचार्यके शिष्योंको कुल कहते है।
सङ्घ-ऋषि, यति, मुनि, अनगार इन चार प्रकारके मुनियोंके समूहको सङ्घ कहते है। मनोज्ञ- लोकमें जिनकी प्रशंसा बढ़ रही हो उन्हें मनोज्ञ कहते है।
स्वाध्याय तपके ५ भेदवाचना प्रच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः ॥२५॥
__ अर्थ- वाचना (निर्दोष ग्रन्थोको उसके अर्थको तथा दोनोंको भव्य जीवोंको श्रवण कराना), प्रच्छना (संशयको दूर करनेके लिये अथवा कृत निश्चयको दृढ़ करनेके लिये प्रश्न पूछना ) अनुप्रेक्षा( जाने हुए पदार्थका बार बार चिन्तवन करना), आम्नाय (निर्दोष उच्चारण करते हुए पाठ करना) और धर्मोपदेश (धर्मका उपदेश करना) ये पाँच स्वाध्याय तपके भेद हैं।
व्युत्सर्ग तपके दो भेदबाह्याभ्यन्तरोपध्योः ॥२६॥
अर्थ- बाह्योपधिव्युत्सर्ग (धनधान्यादि बाह्य पदार्थोका त्याग करना), और आभ्योन्तरोपधिव्युत्सर्ग (क्रोध, मान आदि खोटे भावोंका त्याग करना), ये दो व्युत्सर्ग तपके भेद हैं ॥२६॥
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