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मोक्षशास्त्र सटीक भावोंमेंसे' भव्यत्व भावका भी अभाव हो जाता है। अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः।४
अर्थ-केवलसम्यक्त्व, केवलज्ञान, केवलदर्शन और सिद्धत्वइन भावोंको छोड़कर मोक्षमें अन्य भावोंका अभाव हो जाता है।
भावार्थ- मुक्त अवस्थामें जीवत्व नामक पारिणामिक भाव और कर्मोके क्षयसे प्रकट होनेवाले आत्मिक भाव रहते हैं, शेषका अभाव हो जाता है।
नोट- जिन गुणोंका अनन्तज्ञानादिके साथ सहभाव सम्बन्ध है ऐसे अनन्तवीर्य, अनन्तसुख आदि गुण भी पाये जाते हैं ॥४॥
कर्मोका क्षय होनेके बादतदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात् ॥५॥
अर्थ- समस्त कर्मोका क्षय होनेके बाद मुक्त जीव लोकके अन्त भाग पर्यंत ऊपरको जाता है॥५॥
मुक्त जीवके उर्ध्वगमनमें कारणपूर्वप्रयोगादसङ्गत्वाद्बन्धच्छेदात्तथागति
परिणामाच्च ॥६॥ अर्थ- पूर्वप्रयोग-(पूर्वसंस्कार) से, सङ्गरहित होनेसे, कर्मबन्धनके नष्ट होनेसे और तथा गतिपरिणाम अर्थात् ऊर्ध्वगमनका स्वभाव होनेसे मुक्त जीव ऊर्ध्वगमन करता है ॥६॥
1. जिसके सम्यग्दर्शनादि प्राप्त होनेकी योग्यता हो उसे भव्य कहते है। जब सम्यग्दर्शनादि गुण पूर्ण रूपसे प्रकट हो चुकते है तब आत्मामें भव्यत्वका व्यवहार मिट जाता है।
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