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नता अध्याय
[१७७ पुलाक- जो उत्तरगुणोंकी भावनासे रहित हों तथा किसीक्षेत्र व कालमें मूलगुणोंमें भी दोष लगावें उन्हे पुलाक कहते है।
वकुश- जो मूलगुणोंका निर्दोष पालन करते हों परन्तु अपने शरीर व उपकरणादिका शोभा बढ़ानेकी कुछ इच्छा रखते हों उन्हें वकुश कहते हैं।
कुशील- मुनि दो प्रकारके होते हैं- एक प्रतिसेवनाकुशील और दूसरे कषायकुशील।
प्रतिसेवनाकुशील-जिनके उपकरण तथा शरीरादिसे विरक्तता न हो और मूलगुण तथा उत्तरगुणकी परिपूर्णता है, परन्तु उत्तरगुणोंमें कुछ विराधना दोष हों, उन्हें प्रतिसेवनाकुशील कहते हैं।
कषायकुशील- जिन्होंने संचलनके सिवाय अन्य कषायोंको जीत लिया हो उन्हें कषायकुशील कहते हैं।
निर्ग्रन्थ- जिनका मोहकर्म क्षीण हो गया हो ऐसे बारहवे गुणस्थानवर्ती मुनि निर्ग्रन्थ कहलाते हैं।
स्नातक- समस्त घातिया कर्मोका नाश करनेवाले केवली भगवान् स्नातक कहलाते हैं ।। ४६ ॥
पुलाकादि मुनियोंमें विशेषतासंयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिङ्गलेश्योपपादस्थान
विकल्पतः साध्याः ॥४७॥
अर्थ- उक्त मुनि संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिङ्ग, लेश्या, उपपाद और स्थान इन आठ अनुयोगोंके द्वारा भेदरूपसे साध्य हैं। अर्थात् इन आठ अनुयोगोंके पुलाक आदि मुनियों के विशष भद होते है॥४७॥
इति श्रीमदुमास्वामिविरचिते मोक्षशास्त्रे नवमोऽध्यायः।
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