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________________ १६२] मोक्षशास्त्र सटीक आक्रोश- दुष्ट जीवोंके द्वारा कहे हुए कठोर शब्दोंको शांत भावोसे सह लेना सो आक्रोश परिषहजय है। वध- तलवार आदिके द्वारा शरीरपर प्रहार करनेवालोंसे भी द्वेष नहीं करना सो वध परिषहजय है। याचना- प्राणोंके वियोगका अवसर होनेपर भी आहारादिकको नहीं मांगना सो याचना परिषहजय है। अलाभ-भिक्षाके प्राप्त न होनेपर सन्तोष धारण करना सो अलाभ परिषहजय है। रोग- अनेक रोग होनेपर भी उनकी वेदनाको शांत भावोंसे सह लेना सो रोगपरिषहजय है। तृणस्पर्श-चलते समय पावोंमें तृण कंटक वगैरहके चुभ जानेसे उत्पन्न हुए दुःखको सहना सो तृणस्पर्श परिषहजय है। मलपरिषहजय- जलकायिक जीवोंकी हिंसासे बचनेके लिए स्नान न करना तथा अपने मलिन शरीरको देखकर ग्लानि नहीं करना सो मलपरिषहजय है। सत्कारपुरस्कार- अपनेमें गुणोंकी अधिकता होनेपर भी यदि कोई सत्कारपुरस्कार न करे तो चित्तमें कलुषता न करना सो सत्कार पुरस्कार' परिषहजय है। प्रज्ञा- ज्ञानकी अधिकता होनेपर भी मान नही करना सो प्रज्ञा परिषहजय है। अज्ञान- ज्ञानादिककी हीनता होनेपर लोगोंके द्वारा किये हुए तिरस्कारको शांत भावोसे सह लेना अज्ञान परिषहजय है। _ अदर्शन- बहुत समय तक कठोर तपश्चर्या करने पर भी मुझे 1. प्रसंशाको सत्कार कहते है। 2. कोई कार्य करते समय अगुआ बना लेना सो पुरस्कार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001795
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorPannalal Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, P000, P005, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size12 MB
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