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मोक्षशास्त्र सटीक कारण वेदनीय कर्म मौजूद है, इसलिए उपचारसे ११ परिषह कहे गये हैं। वास्तवमें उनके एक भी परिषह नहीं होता है ॥११॥
बादरसाम्पराये सर्वे ॥१२॥ अर्थ- बादर साम्पराय अर्थात् स्थूल कषायवालें छठवेंसे नववें गुणस्थानतक सब परिषह होते हैं। क्योंकि इन गुणस्थानोंमें परिषहोंके कारणभूत सब कर्मोका उदय है ॥१२॥ कौन परिषह किस कर्मके उदयसे होता है ?
ज्ञानवरणे प्रज्ञाज्ञाने ॥१३॥
अर्थ- प्रज्ञा' और अज्ञान ये दो परिषह ज्ञानावरण कर्मके उदयसे होते हैं ॥१३॥
दर्शनमोहांतराययोरदर्शनालाभौ ॥१४॥
अर्थ-दर्शनमोहनीय और अन्तराय कर्मका उदय होनेपर क्रमसे अदर्शन और अलाभ परिषह होते हैं॥१४॥ चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचना
सत्कारपुरस्काराः ॥१५॥ अर्थ-चारित्रमोहनीय कर्मका उदय होनेपर नाग्न्य, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना और सत्कार पुरस्कारके ये ७ परिषह होते हैं ॥१५॥
वेदनीये शेषाः ॥१६॥ 1. ज्ञानावरण कर्मका उदय होने पर जो थोड़ा ज्ञान प्रकट होता है वह अहंकारको पैदा करता है। ज्ञानावरणका नाश हो जानेपर अहंकार नहीं होता। इसलिये प्रज्ञा परिषह भी ज्ञानावरणके कर्मके उदयसे माना है।
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