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पंचम अध्याय
[ ९३ ___ नोट- सूत्रमें "सद्दशानाम्'' इस पदके ग्रहणसे प्रकट होता है कि गुणोंकी विषमतामें समान जातिवाले अथवा भिन्न जातिवाले पुद्गलोंका बन्ध हो जाता है ।। ३५॥
बन्ध किनका होता हैद्वयाधिकादिगुणानां तु ॥३६॥
अर्थ- किन्तु दो अधिक गुणवालोंके साथ ही बन्ध होता है। अर्थात् बन्ध तभी होगा जब एक परमाणुसे दूसरे परमाणुमें दो अधिक गुण होवें। जैसे दो गुणवाले परमाणुका चार गुणवाले परमाणुके साथ बन्ध होगा इससे अधिक व कम गुणवालेके साथ नहीं होगा। यह बन्ध स्निग्ध स्निग्धका, रूक्ष रूक्षका और स्निग्ध रूक्षका भी होता है ॥३६॥ ' बन्धेऽधिकौ पारिणामिकौ च ॥३७॥
अर्थ- (च) और ( बन्धे ) बन्धरूप अवस्थामें (अधिकौ) अधिक गुणवाले परमाणुओंको अपने रूप( पारिणामिकौ )परिणमानेवाले होते हैं। जैसे गीला गुड़ अपने साथ बन्धको प्राप्त हुए रजको गुड़रूप परिणमा लेता हैं॥३७॥
द्रव्यका लक्षणगुणपर्ययवद् द्रव्यम् ॥३८॥ अर्थ- जिसमें गुण और पर्याय पाई जावे उसे द्रव्य कहते हैं।
गुण- द्रव्यकी अनेक पर्याय पलटते रहनेपर भी जो द्रव्यसे कभी पृथक् न हो, निरन्तर द्रव्यके साथ रहे उसे गुण कहते हैं। जैसे जीवके ज्ञान आदि, पुद्गलके रूप रसादि।
2. यह द्रव्यका लक्षण पूर्वलक्षणसे भिन्न नहीं है। सिर्फ शब्दभेद है अर्थभेद नहीं। क्योंकि पर्यायसे उत्पाद और व्ययकी तथा गुणसे धौव्य अर्थको प्रतीति हो जाती है।
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