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मोक्षशास्त्र सटीक
करेगा तो नित्यता विवक्षित कहलावेगी और यदि पर्यायार्थिक नयसे प्रतिपादन करेगा तो अनित्यता विवक्षित होगी। जिस समय किसी पदार्थको द्रव्यकी अपेक्षा नित्य कहा जा रहा हैं उसी समय वह पदार्थ पर्यायकी अपेक्षा अनित्य भी है। पिता, पुत्र मामा, भानजा आदिकी तरह एक ही पदार्थमें अनेक धर्म रहने पर भी विरोध नहीं आता है ' ॥ ३२ ॥
परमाणुओंके बन्ध होनेमें कारण स्निग्धरूक्षत्वाद्बन्धः ॥ ३३ ॥
अर्थ- चिकनाई और रूखापनके निमित्तसे दो तीन आदि परमाणुओंका बन्ध होता है।
बन्ध- अनेक पदार्थोंमें एकपनेका ज्ञान करानेवाले सम्बन्ध विशेषको बन्ध कहते हैं ॥ ३३ ॥
न जघन्यगुणानाम् ॥ ३४ ॥
अर्थ- जघन्य गुण सहित परमाणुओंका बन्ध नहीं होता । गुण- स्निग्धता और रूक्षनाक अविभागी प्रतिच्छेदों (जिसका टुकड़ा न हो सके ऐसे अंशों) का गुण कहते हैं ।
जघन्य गुणसहित परमाणु- जिस परमाणुमें स्निग्धता और रूक्षताका एक अविभागी अंश हो उसे जघन्य गुणसहित परमाणु कहते हैं ॥ ३४॥
गुणसाम्ये सद्दशानाम् ॥ ३५ ॥
अर्थ- गुणोंकी समानता होनेपर समान जातिवाले परमाणुके साथ बन्ध नहीं होता। जैसे दो गुणवाले स्निग्ध परमाणुका दूसरे दो गुणवाले स्निग्ध परमाणु के साथ बन्ध नहीं होता ।
1. जैनागममें यह 'सूत्र स्याद्वाद सिद्धान्त' का मूलभूत है। पाठक दही मथनेवाली गोपी आदिका उदाहरण देकर विद्यार्थियोंकी विविक्षा, अविविक्षा, गौणता, मुख्यता आदिका स्वरूप समझनेका प्रयत्न करे ।
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