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अष्टम अध्याय ४-अर्द्धनाराच संहनन, ५-कीलक संहनन और ६-असंप्राप्तसृपाटिका संहनन।
जिस कर्मके उदयसे वृषभ (वेष्टन), नाराच (कील) और संहनन ( हड्डियां वज्रकी ही हों उसे वज्रनाराच संहनन नामकर्म कहते हैं । १॥जिस कर्मके उदयसे वज्रके हाड़ और वज्रकी कीलियां हों परन्तु वेष्टन वज्रके न हों उसे वज्रनाराच संहनन नामकर्म कहते हैं ॥२॥जिसके उदयसे सामान्य वेष्टन और कीली सहित हाड़ हों उसे नाराच संहनन नामकर्म कहते हैं ।। ३॥ जिसके उदयसे हड्डियोंकी संधियाँ अर्धकीलित हों उसे अर्धनाराच संहनन नाममकर्म कहते हैं ॥४॥जिसके उदयसे हड्डियां परस्पर कीलित हो उसे कीलक संहनन नामकर्म कहते हैं ॥५॥ और जिसके उदयसे जुदी जुदी हड्डियां नसोंसे बंधी हुई हों, परस्परमें कीलित नहीं हो उसे असंप्राप्तसृपाटिकासंहनन नामकर्म कहते हैं ॥६॥
१०-स्पर्श-जिसके उदयसे शरीरमे स्पर्श हो उसे स्पर्श नामकर्म कहते हैं । इसके आठ भेद हैं-१-कोमल, २-कठोर, ३-गुरू, ४-लघु, ५शीत, ६-कृष्ण, ७-स्निग्ध और ८-रूक्ष ।
११-रस- जिसके उदयसे शरीरमें रस हो वह रस नामकर्म कहलाता हैं। इसके ५ भेद है-तिक्त (चरपरा), सट (कडुआ), कषाय (कषायला), आग्ल (खट्टा) और मधुर (मीठा)।
१२-गन्ध- जिसके उदयसे शरीरमे गन्ध हो उसे गन्ध नामकर्म कहते हैं। इसके दो भेह हैं- १-सुगन्ध, २-दुर्गन्ध।।
१३- वर्ण- जिसके उदयसे शरीरमें वर्ण अर्थात् रूप हो वह वर्ण नामकर्म कहते हैं। इसके पांच भेद है-१-शुक्ल, २-कृष्ण, ३-नील, ४-रक्त, और ५-पीत।
१४-आनुपूर्व्य- जिसके कर्मके उदयसे विग्रह गतिमें मरणसे पहलेके शरीरके आकार आत्माके प्रदेश रहते हैं उसे आनुपूर्व्य नामकर्म
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