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मोक्षशास्त्र सटीक
व्रतों की विशेषतानिःशल्यो व्रती ॥१८॥ अर्थ- शल्यरहित जीव ही व्रती है।
शल्य- जो आत्माको कांटेकी तरह दुःख दे उसे शल्य कहते हैं। उसके तीन भैद है। १-मायाशल्य (छल कपट करना) २-मिथ्यात्वशल्य (तत्वोंका श्रद्धान न होना) और ३-निदान शल्य (आगामी कालमें विषयोंकी वांछा करना।)
जब तक इनमें से एक भी शल्य रहती है तब तक जीव व्रती नहीं हो सकता।
व्रतोंके भेदअगार्यनगारश्च ॥१९॥ अर्थ- अगारी (गृहस्थ) और अनगार (गृहत्यागी मुनि) इस प्रकार व्रतीके दो भेद है।
अगारीका लक्षणअणुव्रतोऽगारी ॥२०॥ अर्थ- अणु अर्थात् एकदेश व्रत पालनेवाला जीव अगारी कहलाता है।'
अणुव्रतके पांच भेद हैं-१ अहिंसाणुव्रत, २-सत्याणुव्रत, ३-अचौर्याणुव्रत, ४-ब्रह्मचर्याणुव्रत, ५-परिग्रहपरिमाणाणुव्रत।
___ अहिंसाणुव्रत- संकल्पपूर्वक त्रस जीवोंको हिंसाका परित्याग करना सो अहिंसाणुव्रत है।
1. महाव्रतोंको पालनेवाले मुनि अनगार कहलाते हैं। इस अध्यायमें अणुव्रतधारियोंके ही विशेष चारित्रका वर्णन है।
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